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६४. (महामुनि केशीकुमार ने कहा-) "हे गौतम! आपकी प्रज्ञा श्रेष्ठ
है। आपने मेरा यह संशय भी दूर कर दिया। (किन्तु एक) अन्य संशय भी मुझे है, हे गौतम! उसके विषय में (भी) मुझे आप बताएं।”
६५. "हे मुने! महान् वेगपूर्ण जल-प्रवाह में बहते/ डूबते हुए प्राणियों
के लिए आप किसे शरण स्थान, गति (आधार-स्थान), प्रतिष्ठा (आश्रय) का स्थान, व द्वीप (निवास-स्थान) मानते हैं?"
६६. (गौतम स्वामी ने कहा-) “जल (प्रवाह) के बीच एक
विशाल/महाद्वीप है। वहां महान् जल प्रवाह (जन्म-मृत्यु) के वेग की गति (पहुंच) नहीं हो पाती ।”
६७. मुनि केशी कुमार मुनि ने गौतम स्वामी से कहा- “आपने किस
द्वीप का कथन किया है?” (तदनन्तर) यह कहने पर केशीकुमार को गौतम स्वामी ने यह कहा
६८. "(उक्त) जल प्रवाह में, जन्म जरा-मृत्यु के वेग में बहते/ डूबते
हुए प्राणियों के लिए (जिनोक्त) धर्म (ही) उत्तम शरण-स्थान, गति (आधार-भूमि), प्रतिष्ठा (आश्रय-स्थान) व द्वीप (निवास
योग्य सुरक्षित स्थल) है। ६६. (केशीकुमार मुनि ने कहा-) “हे गौतम! आपकी प्रज्ञा श्रेष्ठ है।
आपने मेरा यह संशय (भी) दूर कर दिया। (किन्तु एक) अन्य संशय भी मुझे है, हे गौतम! उसके विषय में (भी) मुझे आप
बताएं ।” ७०. “हे गौतम! महा प्रवाह से युक्त समुद्र में (एक) नौका विपरीत
दिशाओं में दौड़ती हुई डगमगा रही है। जिस पर आप (गौतम) आरूढ़ हैं। ऐसी स्थिति में आप कैसे पार जा सकेंगे?"
अध्ययन-२३
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