________________
के निर्माण का समय है। केशीकुमार श्रमण चातुर्याम धर्म के प्रतिनिधि हैं और गौतम स्वामी पंचयाम धर्म के। दोनों का संवाद वस्तुत: दो उज्ज्वल परम्पराओं का संवाद है। एक बार दोनों श्रावस्ती पधारे। केशीकुमार श्रमण तिन्दुक तथा गौतम स्वामी कोष्ठक उद्यान में अपने-अपने शिष्यों सहित ठहरे। दोनों के शिष्यों ने एक-दूसरे को देखा। श्रावस्तीवासियों ने दोनों को देखा। दोनों जैन साधक थे। दोनों के आचार व वेशभूषा में भिन्नता भी थी। इस भिन्नता से जिज्ञासायें जागीं। गौतम स्वामी तिन्दुक उद्यान पधारे। केशीकुमार श्रमण से हुए उनके संवाद ने सभी का समाधान किया। श्रुत व धर्म का उत्कर्ष हुआ।
संवाद तभी संभव होता है जब संवाद-कर्ताओं के मन में कोई ग्रन्थि न हो। अहंकार किसी भी रूप में उपस्थित न हो। विजय-पराजय का भाव न हो। पूर्वाग्रह न हो। दुराग्रह न हो। संकीर्णता न हो। यशोलिप्सा न हो। कृत्रिमता न हो। प्रदर्शन-वृत्ति न हो। पक्षपात न हो। केशीकुमार श्रमण व गौतम स्वामी का मन निर्मल था। दोनों में कोई ग्रंथि न थी। वे पूर्णत: निर्ग्रन्थ थे। गौतम स्वामी का बिना किसी निमंत्रण के तिन्दुक उद्यान पहुंचना
और केशीकुमार श्रमण का पंचयाम धर्म स्वीकार कर लेना इसका स्पष्ट सूचक है। यह दोनों की ऋजुता व प्राज्ञता का प्रमाण भी है। इसीलिये दोनों में संवाद संभव हुआ। अनेक प्रश्नों को उत्तर मिला। धर्म की पतित-पावनी धारा में देश-कालानुरूप परिवर्तन का औचित्य स्पष्ट हुआ। उस चर्चा से सभा में उपस्थित साधकों, देवों व श्रोताओं के साथ-साथ उस तथा आगामी युग की असंख्य धर्मनिष्ठ आत्मायें लाभान्वित हुईं।
चर्चा में सम्मिलित विषयों का क्षेत्र बाह्य वेश-भूषा से लेकर धर्मसाधना-पद्धति व निर्वाण तक विस्तृत है। प्रश्नोत्तरों की अनेक शैलियाँ इस चर्चा की विशेषता है। जिस शैली में प्रश्न किया गया, उसी में उत्तर भी दिया गया है। लक्षणा में सम्पन्न प्रश्नोत्तरों के बाद अभिधा में प्रश्नोत्तरों द्वारा उनकी व्याख्या भी की गई है। इस से चर्चा अधिक जिज्ञासुओं के लिये अधिक बोधगम्य बनी है। उद्देश्य है-परिवर्तित मनः स्थिति एवम् परिस्थिति में भी धर्म का उद्योत अपरिवर्तित एवम् अप्रतिहत रहे।
प्रस्तुत अध्ययन इस उद्देश्य व इसकी सार्थक सफलता को साकार करता है। व्यवहार एवम् भाषा-प्रयोग के क्षेत्रों में धर्मज्ञता की प्रबल प्रेरणा देने के कारण भी इस अध्ययन की स्वाध्याय मंगलमय है।
00
अध्ययन-२३
४२७