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________________ अध्ययन परिचय इस तेइसवें अध्ययन में नवासी गाथायें हैं। इस अध्ययन का केन्द्रीय विषय है-इतिहास के संक्रमण-युग में धर्म-संघ की सर्वसम्मत प्रभावना। जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ के शिष्य केशीकुमार श्रमण एवम् चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर के शिष्य इन्द्रभूति गौतम के मध्य सम्पन्न हुए ऐतिहासिक संवाद के माध्यम से यह विषय साकार हुआ है। इसीलिये इस अध्ययन का नाम 'केशी-गौतमीय' रखा गया। केशीकुमार श्रमण और गौतम स्वामी, दोनों विशिष्ट ज्ञान व चरित्र सम्पन्न व्यक्तित्व थे। उनकी महानता का परिणाम था कि उनके बीच न वाद हुआ, न विवाद। हुआ तो केवल संवाद। संवाद की तेजस्वी किरणों से उस युग में व्याप्त शंकाओं व भ्रमों का कुहासा छंटा। धर्म का सुस्पष्ट स्वरूप सभी के सामने आया। सर्वविदित है कि घटित हो चुकी घटनाओं का आलेख इतिहास कहलाता है। प्रस्तुत अध्ययन की विशेषता यह है कि इसमें इतिहास के इस रूढ़ अर्थ से भिन्न, व्यापक एवम् गहन अर्थ इतिहास का ग्रहण किया गया है। परिस्थितियों में जब परिवर्तन होता है तो जन-मानस व जन-चेतना में भी परिवर्तन होता है। मनुष्य के भीतर होने के कारण यह परिवर्तन अदृश्य किन्तु महत्त्वपूर्ण होता है। इसलिये कि इसी परिवर्तन से मनुष्य का आगामी व्यवहार और जीवन निर्धारित होता है। इतिहास के समानान्तर मनुष्य में होने वाले आन्तरिक परिवर्तनों से प्रस्तुत अध्ययन की पृष्ठभूमि निर्मित हुई है। वर्तमान अवसर्पिणी के प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव के धर्म-शासनकाल में मनुष्य सरल-हृदयी व जड़-बुद्धि हुआ करते थे। उन्हें 'ऋजु-जड़' कहा गया। उसके बाद वे सरल-हृदयी व प्रज्ञावान् हुए। उन्हें 'ऋजु-प्राज्ञ' कहा गया। भगवान् महावीर के समय में वे हृदय से वक्र तथा बुद्धि से जड़ हो गये। उन्हें 'वक्र-जड़' कहा गया। यह मनुष्य के आंतरिक परिवर्तनों का इतिहास है। इन परिवर्तनों के अनुरूप प्रथम व अंतिम तीर्थंकरों ने पंच-याम धर्म का तथा शेष सभी तीर्थंकरों ने चातुर्याम धर्म का निरूपण किया। जिस युग के साधक के लिये धर्म का जो उचित रूप था, वही उसे मिला। भगवान् पार्श्वनाथ द्वारा प्रवर्तित चातुर्याम धर्म के भगवान् महावीर द्वारा प्रवर्तित पंचयाम धर्म में रूपान्तरण का समय ही इस अध्ययन की अन्तर्वस्तु ४२६ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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