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१३. इस प्रकार की उत्तम ऋद्धि (वैभव) व द्युति (प्रकाशमान्) के साथ
वे वृष्णि-पुंगव (वृष्णि-कुल में श्रेष्ठ अरिष्टनेमि) अपने भवन से निकले।
१४. इसके बाद, (राजमार्ग से) गुजरते हुए वहां (मार्ग में) उन
(अरिष्टनेमि) ने भय-त्रस्त, बाड़ों व पिंजरों में बन्द किये गये, अत्यन्त दुःखी प्राणियों को देखा।
१५. (वे प्राणी) जीवन की अन्तिम स्थिति (मृत्यु-मुख) को प्राप्त थे,
(क्योंकि) मांस के लिए उनका भक्षण किया जाने वाला था। (यह) देखकर उन महाप्राज्ञ (अरिष्टनेमि) ने (अपने) सारथी को
इस प्रकार कहा१६. “इन सब सुखार्थी प्राणियों को, किसके निमित्त से बाड़ों व
पिंजरों में रोककर रखा गया है?"
१७. तब, सारथी ने कहा - "ये भद्र (निर्दोष) प्राणी तो आपके
विवाह-कार्य में बहुत से व्यक्तियों को (मांस) भोजन कराने के लिए (बन्द किये गये) हैं।"
१८. उस (सारथी) के बहुजीव-घात (के सूचक) वचन को सुनकर,
(उन) जीवों के प्रति करुणा-युक्त (दया) हुए उन महाप्राज्ञ (अरिष्टनेमि) ने सोचा ।
१६. “यदि मेरे कारण से ये बहुत से प्राणी मारे जाते हैं, तो यह
मेरे लिए परलोक में कल्याणप्रद नहीं होगा।"
अध्ययन-२२
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