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१३. (दर्शन मात्र से) विस्मित हो रहे राजा को मुनि द्वारा इस प्रकार
कहे जाने पर, (वह राजा) पहले कभी न सुने गए वचन से (तो) और भी अधिक संशयाकुल व आश्चर्य-चकित हो गया।
१४. (राजा ने कहा-) “मेरे पास घोड़े व हाथी हैं, (अनेक सेवक
आदि) मनुष्य हैं, (यह सारा) नगर मेरा है। (मेरा अपना) अन्तःपुर (भी) है। मैं मानवीय (समस्त) भोगों को भोग रहा हूं, मेरी आज्ञा (अप्रतिहत रूप से मान्य होती) है, और (समस्त)
ऐश्वर्य मेरे पास है।" १५. “इस प्रकार के (उपरोक्त) सभी काम-भोगों को (मेरे) सम्मुख
उपस्थित कर देने वाली, उत्कृष्ट सम्पदा के होते हुए (भी) में अनाथ कैसे हुआ? हे भगवन् ! आप असत्य (तो) न बोलें ।"
१६. “हे पार्थिव! तुम 'अनाथ' (शब्द) के अर्थ को और (मेरे कथन
के अभिप्राय) कारण को भी नहीं समझ पा रहे हो कि नराधिपति भी किस प्रकार ‘अनाथ' या 'सनाथ' होता है।"
१७. “हे महाराज! कैसे (व्यक्ति) अनाथ होता है और किस रूप में
मैंने (अनाथ शब्द का) प्रयोग किया है, (उस सम्बन्ध में) मुझसे एकाग्रचित के साथ सुनें-"
१८. “प्राचीन नगरों (के महत्व) को भग्न करने वाली (अर्थात्
असाधारण सुन्दर) कौशाम्बी नाम की नगरी है। वहां प्रभृत धन-संग्रह वाले मेरे पिता रहते थे।"
अध्ययन-२०
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