________________
*SMITAHA
है। संसार कागज़ की नाव है। बड़ी सुन्दर है। मोहक है। काठ की नौका से कई गुना ज़्यादा आकर्षक है। धर्म काठ की नौका है। देखने में सुन्दर नहीं लगती। मोहित नहीं करती। कागज़ की नाव के सामने विकर्षक भी लगती है। प्रश्न यदि सागर से पार होने का है, तो काठ की नौका ही काम आयेगी। वही शरण देगी। वही अनाथ को सनाथ बनायेगी। अनाथ उस से स्वयं तो सनाथ होगा ही, दूसरों का नाथ भी बन सकेगा। डूबतों का सहारा बनने की क्षमता भी उसमें आ जायेगी। वह सहारा सांसारिक नहीं होगा। सच्चा होगा।
महानिर्ग्रन्थ धर्म-तीर्थ होता है। आत्मा का संयम आदि सद्प्रवृत्तियों में स्थित रहना उसकी विशेषता होती है। दुःखों के मूलभूत रागादि विकारों के आक्रमण से पूर्णतः सुरक्षित होना उसकी विशेषता होती है। जो सुरक्षित हो, वह सुरक्षा दे भी सकता है। सांसारिकता से सुरक्षित महानिर्ग्रन्थ मैत्री-भावना के साथ अहिंसा महाव्रत का पालन करते हुए अन्य त्रस-स्थावर जीवों को अभय देता है। सुरक्षा देता है। उनका नाथ बनता है। सनाथ वह उन्हें भी बनाता है, जो संसार में फंसे रहते हुए भी उसके पास आते हैं। उसका सम्मान करते हैं। सम्यक् ज्ञान की शरण देकर वह उन्हें अनाथ नहीं रहने देता। अनाथ के महानिर्ग्रन्थ बनने का पथ प्रशस्त कर देता है।
महानिर्ग्रन्थ सांसारिक सहारों के भ्रमपूर्ण आश्रय से भी मुक्त होता है और उनके अहंकार से भी। वह भीतर से भी निर्ग्रन्थ होता है और बाहर से भी। इन्द्रिय-व्यापारों का, मन की गति का और बुद्धि की दिशा का वह शास्ता होता है। आत्मा का गति-निर्धारक होता है। संयम का प्रभावक होता है। कोई भी कारण उसे शुद्ध श्रमणाचार से भ्रष्ट नहीं कर पाता। उसका जीवन मुक्ति-यात्रा का प्रतीक बन जाता है। सच्ची स्वतन्त्रता का उल्लास बन जाता है। रत्न-त्रय का आलोक बन जाता है।
ऐसे महानिर्ग्रन्थ का स्वरूप व आचार इस अध्ययन में उजागर किया गया है। सांसारिकता का अंधकार और सम्यक्त्व की सुबह, दोनों का एक साथ चित्रण दोनों के ही स्वरूप को स्पष्टता से साकार करता है।
सनाथ होने की प्रेरणा देने के साथ-साथ श्रमण-मार्ग के साधकों को सांसारिकता व प्रमाद के विभिन्न स्वरूपों से, मिथ्यात्व के विभिन्न जंजालों से सावधान करने के कारण भी प्रस्तुत अध्ययन की स्वाध्याय मंगलमय है।
अध्ययन- २०
३६६