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६८. महान् प्रभावशाली व महान् यशस्वी मृगापुत्र के (वैराग्यमूलक)
कथन को (तथा उसके) तपः प्रधान, (मोक्ष-रूप) गति की प्रमुखता वाले एवं त्रिलोक विख्यात उत्तम चारित्र को सुनकर
६६. (और) धन को दुःख - वर्द्धक (जानकर एवं) ममत्व-बन्धन को
महाभयकारी जानकर, निर्वाण के (साधक) गुणों को प्राप्त कराने वाली सुखकारी व श्रेष्ठ महान् धर्म धुरा को धारण करें। -ऐसा मैं कहता हूं।
अध्ययन-१६