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________________ { JHAKAA ६२. (ऋद्धि, रस, साता इन तीन प्रकार के) गर्यो, (क्रोध, मान, माया, लोभ- इन चार) कषायों से, (मन, वचन, काया इन के तीन) दण्डों से, (माया, निदान, मिथ्यात्व इन तीन) शल्यों से, (इहलोक, परलोक, आदान, आकस्मिक मरण, अकीर्ति, आजीविकाइन से सम्बन्धित सात प्रकार के) भयों एवं हास्य व शोक से निवृत्त, तथा 'निदान' (सुख-भोग - आकांक्षा) से रहित, और (राग-द्वेषात्मक) बन्धन से (मृगापुत्र) निर्मुक्त (हो गया) । ६३. इस लोक व परलोक में 'अनिश्चित' (सुख की आकांक्षा रख कर तप न करने वाला, बसूले (से काटने) व चन्दन (का लेप करने दोनों स्थितियों) में तथा आहार प्राप्ति व अनशन (उपवास अर्थात् आहार न मिलने की स्थिति) में समभाव रखने वाला (मुनि हो गया) । ६४. (कर्म बन्धन के) अप्रशस्त द्वारों (कारणों) से (निवृत्त होने के कारण या उन द्वारों से होने वाले) आस्रवों का सब प्रकार से निरोध करता हुआ अध्यात्म सम्बन्धी (शुभ) ध्यान-योगों से प्रशस्त 'दम' (संयम या उपशम) रूपी शासन (आगमिक शिक्षा) से युक्त (महामुनि हो गया) । ६५. इस प्रकार ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप तथा शुद्ध (निदान आदि दोषों से रहित, महाव्रत - सम्बन्धी या अनित्यता आदि बारह) भावनाओं द्वारा आत्मा को अच्छी तरह भावित करके, ६६. बहुत वर्षों तक श्रमण-चर्या का पालन कर ( अंत में महामुनि मृगापुत्र ने) एक मास के (भक्त-प्रत्याख्यान) अनशन के द्वारा श्रेष्ठ सिद्धि (मोक्ष) को प्राप्त किया । ६७. सम्बुद्ध (सम्यक् ज्ञान आदि से सम्पन्न) पण्डित व विचक्षण (साधक) ऐसा ही (वैराग्यपूर्ण आचरण) किया करते हैं। मृगापुत्र ऋषि की तरह वे (सांसारिक कामनाओं) भोगों से निवृत्त हो जाते हैं । अध्ययन- १६ ३६३
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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