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________________ ४२. “पृथ्वी पर एकछत्र शासन करने के उपरान्त, (शत्रुओं का) मान-मर्दन करने वाले हरिषेण चक्रवर्ती राजा ने अनुत्तर गति (मुक्ति) प्राप्त की।" 20 ४३. “(इसी तरह) हजारों राजाओं के साथ श्रेष्ठ त्याग करने वाले 'जय' चक्रवर्ती ने (भी) जिनोक्त संयम का अनुष्ठान किया और अनुत्तर गति (मुक्ति) प्राप्त की।" ४४. “साक्षात् देवेन्द्र से प्रेरित होकर ‘दशार्णभद्र' (राजा) ने (भी अपने) मुदित (आमोद व सुख से पूर्ण) 'दशार्ण' राज्य को छोड़कर अभिनिष्क्रमण किया और 'मुनि' रूप में विचरण किया।" ४५. “साक्षात् इन्द्र द्वारा प्रेरित किए जाने पर (भी) 'विदेह' के राजा 'नमि' ने स्वयं को अतिविनम्र बनाया (या संयम-मार्ग के प्रति ही स्वयं को झकाया - अपनी रुचि प्रकट की) और घर-बार छोड़कर श्रमण धर्म में (ही) स्थिरचित्त हुए।" ४६. “कलिंग में 'करकण्डू' (राजा), पांचाल में 'द्विमुख' (राजा), विदेह में 'नमि' राजा, तथा गान्धार में 'नग्गति' (राजा) ४७. ये (सब) राजाओं में श्रेष्ट थे और अपने पुत्रों को राज्य (सिंहासन) पर स्थापित कर, जिन-शासन में प्रव्रजित हुए, और श्रमण धर्म में सम्यक् प्रकार से स्थिर हो गए। अध्ययन-१८ ३२५
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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