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१६. (उक्त ब्रह्मचर्य-पालन रूपी) दुष्कर (कार्य) को जो करता है, उस
ब्रह्मचारी को देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस व किन्नर-(सभी) नमस्कार करते हैं।
१७. यह (ब्रह्मचर्य-रूप) धर्म ध्रुव, शाश्वत, नित्य एवं जिनेन्द्र
(भगवान्) द्वारा उपदिष्ट है। इस (महान् साधना) से दूसरे अनेक (साधक) सिद्ध (मुक्त) हुए हैं, 'सिद्ध' हो रहे हैं, तथा भविष्य में भी ‘सिद्ध' (अवस्था को प्राप्त) होंगे। -ऐसा मैं कहता हूँ।
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अध्ययन-१६
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