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________________ DKOKEK ruary Ta फीर अध्ययन - सार : ब्रह्मचर्य का घात विशेषतः मन व इन्द्रियों के विकारों से होता है। इन विकारों को रोका जा सके, ऐसे उपाय ही 'ब्रह्मचर्य-समाधिस्थान' हैं। इनकी जानकारी प्राप्त कर साधक उक्त कारणों से बच सकता है। अतः मुमुक्षु को चाहिए कि वह इन समाधि-स्थानों का अच्छी तरह अवधारण करे और अप्रमादपूर्वक अब्रह्मचर्य में प्रवृत्त हो एवं संयम, संवर व समाधि में बहुलता/वृद्धि करता रहे। वे समाधि-स्थान दस हैं, जो निम्नलिखित हैं (1) आवास व शयन करने के जो स्थान, तथा उपयोगी पट्टे, बिछौने आदि जो उपकरण पशुओं, नपुंसकों और महिलाओं के संसर्ग से युक्त हों-उनका सेवन न करना, एकान्त स्थान का उपयोग करना। (2) स्त्री-विषयक एवं कामराग-वर्धक कथा-चर्चा से बचना, या मात्र स्त्रियों के ही मध्य बैठ कर कथा-उपदेश-तत्व चर्चा आदि न करना। (3) स्त्रियों के साथ एक आसन पर न बैठना। (4) स्त्रियों की मनोरम इन्द्रियों पर दृष्टि गड़ा कर नहीं देखना और न ही उनके विषय में सोचना। (5) मिट्टी की बनी या पक्की दीवार से या परदे की ओट से स्त्रियों के कूजन, रोदन, आक्रन्दन, गर्जन, गीत, हास्य या विलाप से पूर्ण शब्दों को न सुनना। (6) पूर्वानुभूत रति व क्रीड़ा का अनुस्मरण न करना। (7) सरस, स्निग्ध, स्वादिष्ट व पौष्टिक आहार का सेवन न करना। (8) मात्रा से अधिक आहार-पानी का सेवन न करना। (9) शारीरिक शोभा-सजावट की मनोवृत्ति न रखना। (10) पांचों इन्द्रियों के अनुकूल विषयों में आसक्ति न रखना। इन समाधि-स्थानों का ज्ञान व विवेक न रखने वाले साधक की ब्रह्मचर्य व्रत में आस्था ही डगमगा जाती है, अन्य लोगों की भी अनास्था उस पर आशंकित है, साथ ही चित्त-चंचलता के कारण चारित्र-नाश और उसके फलस्वरूप उन्माद व अनेक रोगों से ग्रस्त होने की स्थिति आ जाती है और साधक पूर्णतः धर्मभ्रष्ट होकर दुर्गति की ओर अग्रसर हो जाता है। ब्रह्मचर्य वास्तव में सर्वज्ञ जिनेन्द्र द्वारा उपदिष्ट नित्य- शाश्वत व ध्रुव धर्म है। यह एक दुष्कर साधना है जिसके पालन करने वाले के समक्ष देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस आदि सभी नतमस्तक हो जाते हैं। इसकी साधना करके ही साधकों को सिद्ध-बुद्ध-मुक्त अवस्था प्राप्त हुई है और होती रहेगी। इलिन्छ २६४ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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