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________________ STOTRA ऐसा क्यों ? (उक्त प्रश्न के उत्तर में) आचार्य ने कहा-(मिट्टी आदि की) दीवार के अन्दर से, परदे के अन्दर से, तथा (पक्की) दीवार के अन्दर से (या ओट में स्थित होकर) स्त्रियों के कूजन, रोदन, गीत, हास्य, स्तनित-गर्जना, क्रन्दन या विलाप के शब्दों को सुनने वाले ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ के ब्रह्मचर्य के विषय में (स्वयं को व दूसरों को) शंका हो (सक)ती है, या फिर कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न हो (सक)ती है, अथवा (ब्रह्मचर्य का) नाश (भी) हो (सक)ता है, या फिर उन्माद (रोग) को (भी) प्राप्त कर (सक)ता है, अथवा दीर्घकालिक रोग व आतंक हो सकता है, अथवा केवली (भगवान्) द्वारा उपदिष्ट 'धर्म' से भ्रष्ट हो (सकता है। इसलिए (ऐसा कहा है कि) (मिट्टी आदि की) दीवार के अन्दर से, परदे के भीतर से तथा (पक्की) दीवार के अन्दर से (या इन सब की ओट से) स्त्रियों के कूजन, रोदन, गीत, हास्य, स्तनित-गर्जन, क्रन्दन या विलाप के शब्दों को नहीं सुनते हुए, निर्ग्रन्थ (संयम-मार्ग में) विचरण करे । सूत्र - ६. (छठा ब्रह्मचर्य-समाधि-स्थान-) (जो) (दीक्षा लेने से पहले गृहवास में की गई) पूर्व की रति व क्रीड़ा का स्मरण नहीं करता, वह 'निर्ग्रन्थ' है । ऐसा क्यों? (उक्त प्रश्न के उत्तर में) आचार्य ने कहा-(दीक्षा लेने से पहले गृहवास में की गई) पूर्व की रति व क्रीड़ा का स्मरण करने ॐ अध्ययन-१६ २८१ 040*40
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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