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________________ सोलहवाँ अध्ययन : ब्रह्मचर्य-समाधि स्थान सूत्र-१. आयुष्मन् ! मैंने सुना है कि उन भगवान् (महावीर) ने इस प्रकार कथन किया है, (तदनुरूप) स्थविर (गणधर) भगवानों ने 'ब्रह्मचर्य' (सर्वमैथुन-विरति, इन्द्रिय-मनोनिग्रह एवं शुद्ध आत्म-स्वभाव-रमण) से सम्बन्धित दश (प्रकार के) समाधि-स्थान (साधक उपाय) बताए हैं, जिन्हें सुनकर तथा (अर्थ-निश्चय-सहित) हृदयंगम कर, भिक्षु (उत्तरोत्तर) संयम की बहुलता तथा संवर व समाधि की अधिकाधिकता से सम्पन्न होते हुए, स्वयं (के मन, वचन व शरीर) को तथा इन्द्रियों को गुप्त (संयमित व नियन्त्रित/अप्रमत्त वशीभूत) रखे, तथा 'ब्रह्मचर्य' को (नौ प्रकार की गुप्तियों के द्वारा) सुरक्षित रखते हुए, सदा अप्रमत्त प्रमाद-रहित होकर विचरण करे।। (शिष्य-जिज्ञासा) सूत्र-२. उन स्थविर (गणधर) भगवन्तों ने वे कौन-से दश (प्रकार के) ब्रह्मचर्य-सम्बन्धी 'समाधि-स्थान' बताए हैं, जिन्हें सुनकर एवं (अर्थ के निश्चय-सहित) हृदयंगम कर, भिक्षु (उत्तरोत्तर) संयम की बहुलता तथा संवर व समाधि की अधिकाधिकता से सम्पन्न होते हुए, स्वयं (के मन-वचन व शरीर) को तथा इन्द्रियों को गुप्त (संयमित, नियन्त्रित, वशीभूत) रखे, तथा 'ब्रह्मचर्य' को (नौ प्रकार की गुप्तियों के द्वारा) सुरक्षित रखते हुए, सदा प्रमादहीन होकर विचरण करे? अध्ययन-१६ २७३
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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