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________________ एक ब्रह्मचर्य यदि सध जाये तो सम्पूर्ण आत्म-साधना स्वयमेव सध जाती है। इसीलिये यह आत्म-साधना का आधार है। ब्रह्मचर्य-सम्पन्न साधक सभी आसक्तियों से मुक्त होता है। सभी ग्रंथियों से रहित होता है। निग्रंथ होता है। सुख दु:ख उसे नहीं व्यापते। देव-मानव-गंधर्व-यक्ष, सभी के लिये वह पूज्य होता है। उसकी आत्मा की यात्रा मंगलमय होती चली जाती है। इसके विपरीत अब्रह्म दुर्गति का द्वार है। साधना का अवरोधक है। अपमान को निमंत्रित करने वाला है। सुख व दु:ख के बीच आत्मा को लुढ़काता रहता है। उसे विषयासक्ति के बंधनों में जकड़ता रहता है। तरह-तरह के कर्मों से उसे भारी करता चला जाता है। विकृत बनाता चला जाता है। अब्रह्म से ग्रस्त साधक सर्वज्ञ-उपदिष्ट धर्म से ही भ्रष्ट हो जाता है। उन्माद व विविध रोग-आतंकों से पीड़ित होने की आशंका उसे सदैव घेरे रहती है। परीषह-विजय, तपश्चरण, ध्यान आदि सभी श्रमणोचित कार्य उसके लिये असम्भव होने लगते हैं। वह भय-ग्रस्त होता है। ब्रह्मचर्य से प्राप्त होने वाले फलों पर सन्देह करने लगता है। अपने सन्देह को कुतर्कों से पुष्ट करने लगता है। मिथ्यात्व की राह पर आगे बढ़ता ही चला जाता है। उसका संसार कम होने का नाम नहीं लेता। भटकाव ही उसका सत्य बन जाता है। भटकाव के स्थान पर सम्यक् यात्रा आत्मा का सत्य बने, यह प्रस्तुत अध्ययन का उद्देश्य है। ब्रह्मचर्य के दस समाधि-स्थानों को अपनाने से यह उद्देश्य पूर्ण होता है। इन्हें अपनाने के लिये आवश्यक है जीवन की उन स्थितियों को जानना, जिनमें ये प्रकट होते हैं। यहां उन स्थितियों का उल्लेख किया गया है। बताया गया है कि विविक्त शयनासन से स्पर्शनेन्द्रिय का, आहार-मर्यादा से रसनेन्द्रिय का, स्त्री-दर्शन न करने से चक्षुरिन्द्रिय का, स्त्रीशब्द-श्रवण न करने से श्रोत्रेन्द्रिय का, काम-कथा, शरीर-सज्जा व पूर्वभुक्त भोगों की स्मृति न करने से मन का तथा पंचेन्द्रिय-विषयासक्ति-त्याग से पांचों इन्द्रियों का संयम उपलब्ध होता है। यह शरीर से उन्मुख एवम् आत्मा के सम्मुख होने का मार्ग है। यह ब्रहमचर्य का स्रोत है। लक्षण भी है। स्वभाव भी है। ब्रहमचर्य से प्राप्त होने वाली 'समाधि' अर्थात् आत्मा की सहज अवस्था तक पहुंचने में बाधक और साधक, सभी कारणों का दिग्दर्शन यहां कराया गया है। बाधक कारणों से सावधान और साधक कारणों के प्रति प्रेरित करने के साथ-साथ जीवन के वांछनीय स्वरूप को प्रस्तावित करने के कारण भी प्रस्तुत अध्ययन की स्वाध्याय मंगलमय है। 00 अध्ययन-१६ २७१
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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