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________________ अध्ययन परिचय बारह सूत्रों और सत्रह गाथाओं से निर्मित. प्रस्तुत अध्ययन का केन्द्रीय विषय है-साधक को ब्रह्मचर्य-साधना में स्थित करने वाले उपाय। ब्रह्मचर्य के माध्यम से आत्मा को समाधिस्थ करने वाले उपायों का वर्णन होने के कारण भी प्रस्तुत अध्ययन का नाम 'ब्रह्मचर्य समाधि-स्थान' रखा गया। ब्रह्मचर्य का अर्थ मात्र मैथुन-सेवन-त्याग नहीं है। ब्रह्मचर्य का अर्थ है-समस्त इन्द्रियों व मन को संयत या नियन्त्रित रखते हुए काम-भोगादि अभिलाषाओं को प्रादुर्भूत ही न होने देना एवम् आनन्द के अक्षय कोश-शुद्धात्मस्वरूप में ही रमण करते रहना। जड़-चेतन पर-पदार्थों में रमण छोड़ कर आत्म-रमण करना ब्रह्मचर्य है। इसे सभी तपों में उत्तम तप कहा गया है। यह आत्म-साधना का मेरु-दण्ड है। यह प्राणि-मात्र की भोग-विकृति दूर होने पर उजागर होने वाली संस्कृति है। आत्मा का स्वभाव है। पांचों इन्द्रियों और मन का आनन्द सच्चा आनन्द नहीं। इसीलिये अतृप्ति भड़का कर वह देखते-देखते समाप्त हो जाता है। आत्मिक आनन्द सच्चा आनन्द है। अक्षय आनन्द है। असीम और अबाध आनन्द है। परम तृप्ति-कारक आनन्द है। यह आनन्द तब तक प्राप्त नहीं हो सकता जब तक इसके इच्छुक का सम्बन्ध शारीरिक व सांसारिक आनन्द के भ्रम या नाटक से समाप्त न हो जाये। बहिर्नेत्र मूंद लेने पर अन्तर्नेत्र खुलते हैं। बहिर्जगत् में आनन्द के नाटक से मोह-भंग होने पर अन्तर्जगत् में आत्मा के आनन्द से सम्बन्ध जुड़ता है। सच्चे आनन्द से परिचय होता है। ब्रह्मचर्य के अभाव में यह परिचय सम्भव नहीं। ब्रह्मचर्य शरीर से आत्मा की ओर जाने की प्रक्रिया है। शरीर के संसार में मन का न रमना इसका लक्षण है। इस से पांचों इन्द्रियां विषयासक्ति से दूर हटती हैं। आत्मा के आदेश से संचालित होती हैं। जितेन्द्रियता से ब्रह्मचर्य और ब्रह्मचर्य से जितेन्द्रियता की प्राप्ति होती है। इन्द्रियों के साथ-साथ मन-वचन-काया पर भी साधक का नियंत्रण ब्रह्मचर्य-प्रक्रिया का अंग है। ऐसा साधक सोते हुए भी अप्रमत्त रहता है। ब्रह्मचर्य से 'संयम-बहुलता' व साधक की निष्कम्प अवस्था भी प्राप्त होती है। संयम से पापों के द्वार बन्द होते हैं। आत्मा समाधि की अवस्था में या सहज अवस्था में ठहरने लगती है। निरन्तर इस अवस्था में आत्मा का बने रहना समाधि-बहुलता है, जो ब्रह्मचर्य से प्राप्त होती है। २७० उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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