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________________ ७. छिन्नविद्या', स्वर-विद्या, भूमि-विद्या, अन्तरिक्ष-विद्या, स्वप्न-विद्या', लक्षण-विद्या, दण्ड-विद्या, वास्तुविद्या, अंगविकार (विचार) विद्या', स्वरविचय-विद्या -इन विद्याओं के आधार पर जो आजीविका नहीं चलाता, वह (ही वास्तव में) 'भिक्षु' है। ८. मंत्र, मूल (जड़ी-बूटी), वैद्यक से सम्बन्धित विविध चिन्तन, वमन, विरेचन, (भूतादि को भगाने के लिए) धूम-प्रयोग तथा नेत्र (सम्बन्धी औषधि या जलनेती आदि का प्रयोग), स्नान (वाष्पस्नान या अभिमंत्रित जलौषधियों से अभिषेक आदि), रोगावस्था में सम्बन्धियों की स्मृति या उनकी शरण लेना, चिकित्सा-कार्य (करना व करवाना) - (इन सब) को जानकर, (तथा त्याज्य समझते हुए उनके करने-करवाने का परित्याग करते हुए) जो (संयम-मार्ग में) विचरण करता है, वह (ही वास्तव में) 'भिक्षु' है। ६. क्षत्रिय राजा, (मल्ल आदि) गण, उग्र, राजपुत्र, ब्राह्मण, भोगिक और विविध शिल्पी लोग-इनकी प्रशंसा व सम्मान-पूजा के रूप में (जो कुछ भी नहीं कहता, (अपितु) इसे (त्याज्य) समझ कर विचरण करता है, वह (ही वास्तव में) 'भिक्षु' है। १. वस्त्र या पात्र आदि के कटे भाग या छिद्र के आधार पर शुभाशुभ बताना।। २. संगीत के स्वरों से सम्बन्धित, या नासिका के दक्षिण-वाम स्वरों के आधार पर शुभाशुभ बताने की विद्या। ३. भूकम्प, या भूमि में दबे हुए द्रव्य आदि का परिज्ञान, या भूमि-विशेष की शुभाशुभता का ज्ञान। ४. आकाशीय ग्रह आदि की गति से वर्षा आदि के शुभाशुभ होने का ज्ञान । ५. जिसके द्वारा स्वप्न के शुभ-अशुभ फल का कथन किया जाता है। ६. शारीरिक चिन्हों के आधार पर शुभाशुभता का ज्ञान । ७. दण्ड/लाठी आदि के लाभप्रद/हानिप्रद होने का ज्ञान । ८. भवनादि के निर्माण की शुभाशुभता का ज्ञान । ६. अंग-विशेष के स्फुरण की शुभाशुभता का ज्ञान । १०. पशु-पक्षियों की बोली के आधार पर शुभाशुभ काल का ज्ञान । अध्ययन-१५ २६३
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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