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है। एक-एक पद समग्र जीवन-दर्शन का द्वार है। आंखें खोलते ही स्वयमेव खुल जाने वाला द्वार है। कदम बढ़ाते ही प्रशस्त हो जाने वाला पथ है यह शास्त्र। साधना से साध्य तक, कर्म से फल तक तथा जीव से अजीव तक विस्तृत ज्ञान के गहनतम विपुल भण्डार का नाम है'उत्तराध्ययन सूत्र'। आत्म-परिचय से आत्मोपलब्धि तक, सभी सिद्धिदायक प्रक्रियाओं की सम्पूर्ण विवेचना है यह । इसका पठन-पाठन, चिन्तन-मनन व आचरण पारस के समान है। इसके सम्पर्क से असंख्य लौह, स्वर्ण बन गये, असंख्य अज्ञानी, ज्ञानी हो गये और असंख्य बंधन, मुक्ति हो चले।
यह इसकी एक विशिष्ट शक्ति है कि अर्थ ज्ञान न होने पर भी किसी साधक द्वारा इसका नित्य-पाठ महान् आत्मिक-शुद्धि की दिशा में उसी प्रकार अचूक प्रभाव उत्पन्न करता है, जिस प्रकार सर्प द्वारा दंशित व्यक्ति पर, मंत्रों के अर्थ न जानने पर भी विशेष मंत्रों को सुनने का प्रभाव पड़ता है। फिर अर्थ-सहित स्वाध्याय की तो बात ही क्या है! मंत्र-श्रवण मात्र से सर्प दंशित व्यक्ति के शरीर से विष का निवारण होता है। इसी प्रकार भगवान् की वाणी पढ़ने या सुनने से आत्मा पर आच्छादित कर्म-आवरणों का निवारण होता है। सभी सुख-दुःख कर्मों के फल हैं। अत: 'उत्तराध्ययन सूत्र' सभी लौकिक-अलौकिक समस्याओं के समाधान की शक्ति से परिपूर्ण है। इस दृष्टि से 'परिशिष्ट' में विशिष्ट सामग्री यहां प्रकाशित की जा रही है।
इतने महत्वपूर्ण सूत्र का यह जो अनुवाद-रूप धर्म-कार्य सम्पन्न हुआ, यह मेरा अपना कार्य नहीं है। वस्तुतः यह तो गुरुदेव योगिराज की ही असीम कृपा का फल है। उन की कृपा न होती तो इस कार्य का संभव होना असंभव था। परम पूज्य संघ शास्ता शासन-सूर्य गुरुदेव मुनि श्री रामकृष्ण जी महाराज का कदम-कदम पर मुझे दिशा-निर्देश प्राप्त हुआ। उनके लिये मेरा रोम-रोम कृतज्ञ है। सरल आत्मा पूज्य श्री शिवचन्द जी (भगत जी) महाराज का स्नेहिल आशीर्वाद मुझे बराबर ऊर्जा देता रहा। मेरी स्वाध्याय में उनका भी आधारभूत योगदान है। श्री रमेश मुनि जी व श्री अरुण मुनि जी का स्वाध्याय-सहकार निरन्तर बना रहा। श्री नरेन्द्र मुनि जी, मुनि रत्न श्री अमित मुनि जी, श्री विनीत मुनि