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________________ हुए कि 'यह अर्थ भी हो सकता है और यह अर्थ भी हो सकता है' उक्त शब्द के दोनों ही अर्थ प्रतिपादित कर दिये गये हैं। दोनों अर्थों में थोड़ा-बहुत अन्तर होता तो विशेष कठिनाई न होती। सत्य यह है कि दोनों अर्थ एक-दूसरे से विपरीत हैं। ऐसे में प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि मुझ-सा अल्पज्ञ कौन से अर्थ को सही मानते हुए अनुवाद करे? ऐसे ही कुछ शब्द और भी हैं, जिन सभी का उल्लेख यहां करना न तो उचित है, और न ही संभव। यह उन कठिनाइयों का एक नमूना है, जो अनुवाद करते हुए आईं। उपलब्ध अनुवादों में मेरा अनुवाद विशिष्ट है ऐसा मैं नहीं मानता। यह अवश्य मानता हूं कि प्रत्येक अनुवाद की अपनी उपयोगिता होती है। किसी न किसी रूप में यह अनुवाद भी उपयोगी होगा। और कुछ नहीं तो भगवान् की वाणी का प्रचार-प्रसार ही इस से और आगे बढ़ेगा। सभी श्रद्धालु अपने-अपने ढंग से भगवान् के प्रति श्रद्धा समर्पित करते हैं। प्रस्तुत अनुवाद के रूप में मैंने भी अपनी श्रद्धा समर्पित की है। वास्तव में धर्म-रथ, श्रृत-रथ तभी आगे बढ़ता है, जब प्रत्येक व्यक्ति उस में हाथ लगाये। श्रुत-रथ जन-जन तक पहुंचे, इस प्रयोजन से मैंने भी उसमें हाथ लगाने का प्रयास किया। प्रस्तुत अनुवाद वही 'हाथ' है। इस से अधिक कुछ नहीं। उपसंहार - 'उत्तराध्ययन सूत्र' भगवान् महावीर की अंतिम देशना है। जैन धर्म का मर्म है। जैन धर्म में इसका वही महत्त्व है जो बादलों में नीर का, पुष्पों में पराग-कोश का एवम् दिन के लिये सूर्य का है। जैनत्व का ज्ञान-विज्ञान, आचार-विचार एवम् साधना-साध्य आदि सम्पूर्ण ज्ञान यदि कोई जिज्ञासु एक ही स्थान पर समग्रतः प्राप्त करना चाहे तो उसके लिये एक ही शास्त्र ज्ञान-कोष के समान पर्याप्त है और वह है'उत्तराध्ययन सूत्र'। सागर कहने को 'रत्नाकर' है परन्तु सब जानते हैं कि रत्न, उसकी गहराई में खोजने पर ही प्राप्त होते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र' में रत्न खोजने की आवश्यकता नहीं। इसकी तो प्रत्येक पंक्ति रत्न है। एक-एक शब्द अमूल्य है। एक-एक वाक्य परिपूर्णकारी ज्ञान का पर्याय
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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