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________________ अनुवाद है। यह एक भाषा की रचना को दूसरी भाषा में ज्यों की त्यों रचने का प्रयत्न करना है। इस प्रकार प्रयत्न करना है कि अनूदित पाठ अनुवाद न लगे। वह अनूदित भाषा में रची गई मूल रचना ही प्रतीत हो। मूल रचना के भाव तो उसमें ज्यों के त्यों अभिव्यक्त हों ही, साथ-साथ रचना का सौंदर्य भी उसमें अप्रतिहत रहे। तभी अनुवाद मूल की प्रभा से आलोकित हो सकता है। प्रस्तुत अनुवाद में मैंने अपनी क्षमताओं के अनुसार ऐसा ही करने का प्रयत्न किया है। अधिकतम सम्भव सीमा तक अर्थ मूल के अनुरूप अथवा मूल बन कर ही अभिव्यक्त हो, यह प्रस्तुत अनुवाद का लक्ष्य रहा है। जहां तक हो सका. शब्द भी मल के निकट रखे गये हैं। मुल पाठ अधिक से अधिक स्पष्ट हो, इस प्रयोजन से मूल प्राकृत की संस्कृत छाया भी साथ-साथ दी गई है। अनुवाद करते हुए प्रयास यह भी रहा कि मूल पाठ का सौंदर्य हिन्दी में भी ज्यों का त्यों सुरक्षित रहे। यह प्रयास किस सीमा तक सफल हुआ, इस का निर्णय तो विद्वद्वर्ग ही करेगा। मैं तो यह अनुरोध ही कर सकता हूं कि मेरी त्रुटियों से मुझे अवगत कराने की कृपा करें ताकि आगामी संस्करण में उनका परिहार हो सके। ____ अनुवाद करते हुए जो अनुभव मुझे हुआ, उसके दो तथ्य विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं-पाठान्तर और अर्थ भेद। पाठान्तर एक पुरानी चली आने वाली समस्या है। किसी संस्करण में कोई शब्द है और किसी संस्करण में कोई और। सभी प्रतियों में एक जैसे शब्द नहीं हैं। जहां जो शब्द है, उसी के अनुरूप अनुवाद हो, यह सहज भी है और वांछनीय भी। कठिनाई कुछ अवसरों पर अर्थ-भेद में आती है। उदाहरण के लिये 'यज्ञीय' नामक पच्चीसवें अध्ययन की प्रथम गाथा में शब्द आया-'जमजन्नमि'। इस शब्द का भिन्न-भिन्न अनुवादकों ने भिन्न अर्थ किया है। कहीं 'यम' से मृत्यु का आशय लेकर 'हिंसापूर्ण यज्ञ' इसका अर्थ है तो कहीं 'पांतजलि सूत्र' के आधार पर 'यम' से नियम व पांच महाव्रत का आशय लेकर अर्थ किया गया है। इसके अनुसार इसका अर्थ है'अहिंसा आदि व्रतों की आराधना-रूप यज्ञ।' कहीं-कहीं यह कहते
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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