SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का अनुवाद हो, यह मेरी उत्कट अभिलाषा थी। प्रस्तुत हिन्दी अनुवाद से हरियाणवी अनुवाद का कार्य सहज एवम् प्रशस्त हुआ। गुरु-कृपा से मैं हरियाणवी अनुवाद भी पूर्ण कर सका। इसे मैं अपने जीवन का ऐतिहासिक सुख अनुभव करता हूं। गुरु-कृपा से हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हो रहा है। गुरु-कृपा से हरियाणवी अनुवाद भी शीघ्र ही प्रकाशित होगा। 'उत्तराध्ययन' का प्रस्तुत अनुवाद जब पूर्ण हुआ तो पीतमपुरा, दिल्ली की जैन स्थानक में लघु संगोष्ठी भी आयोजित की गई। संगोष्ठी में अनेक सन्तों, साध्वियों, श्रावकों और श्राविकाओं ने रुचिपूर्वक भाग लिया। उस संगोष्ठी में इस अनुवाद की वाचना की गई। सन्तों व साध्वियों ने अन्य अनुवादों की पुस्तकें भी साथ रखते हुए इस अनुवाद को निकष पर कसा। वह ज्ञान-चर्चा उपयोगी भी रही और आनन्दपूर्ण भी। अनुवाद करते हुए 'उत्तराध्ययन' की अनुवाद प्रक्रिया ने अनेक अनुभव प्रदान किये। अनुवाद करने से पूर्व और अनुवाद करते हुए 'उत्तराध्ययन' के अन्य लगभग सभी अनुवादों को गहराई से पढ़ने व देखने का सुअवसर मिला। प्रभु-वाणी का मर्म स्पष्टत: समझने में सहायता भी मिली। यह अनुमान भी हुआ कि अनुवाद करते हुए अनुवादकों को किन-किन और कैसी-कैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा! वास्तव में अनुवाद का कार्य रचना से कम कठिन नहीं होता। अनेक अवसरों पर तो यह रचना से भी अधिक कठिन होता है। रचना करते हुए व्यक्ति स्वतंत्र होता है। अपनी क्षमताओं के अनुसार वह कुछ भी लिख सकता है। रचनात्मकता के आकाश में चाहे जिस दिशा की ओर उड़ान भर सकता है। अनुवाद करते हुए व्यक्ति स्वतंत्र नहीं होता। वह मूल पाठ से आबद्ध होता है। मूल पाठ के अनुरूप ही उसे चलना होता है। मूल पाठ के भावों के अनुरूप ही शब्द-चयन और प्रयोग करना होता है। अनुवाद का अर्थ है-भाषान्तर या फिर से कहना। जो भाव एक बार अभिव्यक्त हो चुके हैं, उन्हें दूसरी भाषा में पुनः अभिव्यक्त करना
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy