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जी, श्री हरि मुनि जी तथा श्री प्रेम मुनि जी की सेवायें मेरे लिये सदैव प्रस्तुत रहीं। महासाध्वी श्री सुन्दरी देवी जी महाराज की भी मधुर प्रेरणा रहती। वे हमेशा पूछतीं-"आपका 'उत्तराध्ययन' कब आ रहा है?" उनकी सुशिष्याओं साध्वी रत्न श्री सुशील जी, तपोनिधि साध्वी सुषमा जी, साध्वी संगीता जी, साध्वी सौरभ जी, साध्वी सुनीता जी आदि सभी साध्वियों ने इस कार्य में रुचि ली। संगीति में भाग लिया। प्रकाशन से पूर्व प्रस्तुत अनुवाद को पढ़ा-बाँचा। साध्वी रत्न श्री स्नेह कुमारी जी महाराज व साध्वी रश्मि जी आदि साध्वियों ने भी इसमें भरपूर रुचि ली। साध्वी मनोरमा जी, साध्वी यशा जी आदि की सहज उत्सुकता ने इस कार्य को आगे बढ़ाया। साध्वी प्रियदर्शना जी की प्रतीक्षा ने भी इस कार्य-प्रेरणा को उदीप्त किया। जैन दर्शन के प्रबुद्ध मनीषी डा० दामोदर प्रसाद शास्त्री ने इस कार्य में अपना पूरा-पूरा सहयोग दिया। डॉ. विनय विश्वास की श्रद्धा-भक्ति भरा सहयोग भी अविस्मरणीय है। जिन पूर्व अनुवादों का प्रस्तुत अनुवाद में सहयोग मिला, उन सभी के लिये, तथा जिन व्यक्तियों की इस कार्य में किचित् भी भूमिका रही, उन सभी के लिये मैं हार्दिक आभार और साधुवाद प्रस्तुत करता हूं।
और अन्त में, स्पष्ट कर दूं कि मैं संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं का विद्वान नहीं हूं। अपनी सीमित क्षमताओं के आधार पर जो यह कार्य मुझ से हुआ, इसमें त्रुटियों का रह जाना सहज है। भगवद्-वाणी के विपरीत यदि कोई प्ररूपणा हो गई हो तो उसके लिये मैं पूर्ण विनय-भाव से क्षमा-याचना करता हूं। 'तस्स मिच्छामि दुक्कडं' लेता हूं।
-सुभद्र मुनि