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________________ १२. “वेद पढ़ (भी) लिया तो वह 'त्राण' (रक्षा का साधन) नहीं हो पाता, (यज्ञ में पशु-हिंसा के समर्थक) ब्राह्मणों को खिलाया-पिलाया (भी) जाय, (तो भी) वे 'तमस्तम' (घोर अन्धकार से युक्त नरक) में पहुंचा देंगे, अपने जन्मे (औरस) पुत्र भी 'त्राण' (रक्षक) नहीं होते, (इस स्थिति में) कौन ऐसा होगा जो आपके इस (उक्त कथन) का अनुमोदन करेगा?" १३. “ये काम भोग (जीवों को) सुख तो क्षण-मात्र देते हैं, (परन्तु) दुःख चिरकाल तक दिया करते हैं। दुःख तो प्रचुर/अधिक देते हैं, (किन्तु) सुख थोड़ा ही दिया करते हैं। (ये काम-भोग) संसार-मुक्ति (की प्राप्ति के मार्ग) में 'विपक्ष' (बाधक शत्रु बनते) हैं, और अनर्थों की खान (भी) हैं।' १४. “कामनाओं से निवृत्त न होने वाला व्यक्ति दिन-रात (अतृप्ति के कारण) संतप्त होता हुआ इधर-उधर भटकता-फिरता रहता है, और अन्य (सगे-सम्बन्धियों आदि) के लिए प्रमादयुक्त होकर, धन की गवेषणा में लगा हुआ (वह व्यक्ति क्रमशः) वृद्धावस्था एवं (एक दिन) मृत्यु को (भी) प्राप्त हो जाता है।" १५. “यह (वस्तु) मेरे पास है, यह (वस्तु) मेरे पास नहीं है, यह कार्य मुझे करना है, यह कार्य नहीं करना है, इस प्रकार बार-बार बकवास (व सोच-विचार) करते रहने वाले उस (व्यक्ति) को 'हर' (प्राणहारी काल आदि) हरण कर ले जाते हैं, इसलिए प्रमाद कैसा?" १६. (पिता पुरोहित का कथन-) “जिस के लिए लोग तप करते हैं, (जैसे उदाहरण - रूप में) स्त्रियों के साथ-साथ प्रचुर धन, (माता-पिता आदि उपकारक) स्वजन, तथा उत्कृष्ट काम-भोग, यह सब (तो) तुम दोनों को यहीं स्वतः हस्तगत है। (फिर क्यों मुनि बनकर तपस्या का मार्ग अपनाना चाहते हो?)" अध्ययन-१४ २३६
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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