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चौदहवाँ अध्ययन :
इषुकारीय
१. पूर्व जन्म में देवता होकर, एक (ही) विमान में रहने वाले
कुछ(जीव देव-आयु पूर्ण कर, वहां से) च्युत हुए, (और) देव-लोक के समान रमणीय, समृद्धिशाली व ख्यातिप्राप्त इषुकार नामक प्राचीन नगर में (अवतरित हुए)।
पूर्वकृत अपने कर्मों का भोग अवशिष्ट होने के कारण वे उदग्र (उच्च) कुलों में पैदा हुए। संसार-सम्बन्धी (जन्म-मरण आदि) भय से निर्वेद (वैराग्य व उदासीनता) को प्राप्त होते हुए, (काम-भोगादि को) छोड़कर, उन्होंने जिनेन्द्र (द्वारा प्रतिपादित/अनुसृत मुक्ति के) मार्ग की शरण ली। पुरुषत्व को प्राप्त दोनों (पुरोहित) कुमार, पुरोहित, और उसकी पत्नी 'यशा', विशालकीर्ति वाला 'इषुकार' राजा और उसकी रानी 'कमलावती' (इस प्रकार वे छः जीव थे)।
४. (एक बार जैन मुनियों को) देखकर, उन्हें (दोनों पुरोहित कुमारों
को) काम-भोगों से विरक्ति हो गई। वे जन्म, बुढ़ापे व मृत्यु के भय से अभिभूत (भयभीत) हो गए। संसार-चक्र से मुक्ति पाने के लिए उनका चित्त 'मोक्ष' (रूपी अलौकिक रमण-स्थान) के प्रति दृढ़ हो गया।
५. (मुनियों के दर्शन से एक बार में ही विरक्ति हो जाने का कारण
यह था कि) अपने (पौरोहित्य) कर्म में संलग्न पुरोहित ब्राह्मण के (उन) दोनों ही प्रिय पूत्रों को तब (अपने) पूर्व-जन्म की तथा (वहां) सम्यक् आचरित तप व संयम की स्मृति हो आई थी।
अध्ययन-१४
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