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________________ बचपन से ही अपने पुत्रों के मन में जैन साधुओं के विषय में भय पैदाकर, उनसे दूर रहने की भावना भरने का प्रयास किया। किन्तु, भवितव्यता कुछ और थी। एक दिन, आहार कर रहे दो मुनियों को उन्होंने देखा और उन्हें पूर्वजन्म-स्मृति हो आई। विरक्ति के भावों में वृद्धि हुई और उन दोनों ने मुनि-दीक्षा ग्रहण करने का निश्चय किया। वे अनुमति प्राप्त करने के लिए माता-पिता के पास पहुंचे। वैदिक/यज्ञीय संस्कृति के पक्षधर माता-पिता और श्रमण संस्कृति के अनुयायी उन दो पुत्रों के मध्य संवाद प्रारम्भ हुआ। पुरोहित ने अपनी संस्कृति के अनुरूप तर्कों का सहारा लेकर उनसे गृहस्थाश्रम में रहकर आश्रमोचित कर्तव्य व उत्तरदायित्वों का वहन करने का आग्रह किया, जब कि पुरोहित-पुत्रों ने श्रमण संस्कृति के अनुरूप जीवन व काम-भोगों की नश्वरता का प्रतिपादन कर, सांसारिक दु:ख के मूल कारणों का नाश करने के लिए अध्यात्म-साधना की श्रेयस्करता का समर्थन करते हुए, मुनि-चर्या का औचित्य सिद्ध किया। भुग पुरोहित ने उन पुत्रों को नास्तिक (चार्वाक) मत का आश्रय लेकर भी, साधना-मार्ग से विचलित करने का प्रयास किया, परन्तु वह सफल नहीं हो पाया। अनेक तर्क-वितर्कों के पश्चात् पुत्रों की वैराग्य-दृढ़ता से प्रभावित होकर, उसने भी मुनि-चर्या स्वीकार करने का निश्चय किया। पुरोहित-पत्नी ने भी अपने पति का अनुगमन किया। इस प्रकार पुरोहित-परिवार के चारों सदस्यों (माता-पिता, दोनों पुत्रों) ने श्रमण दीक्षा स्वीकार की। तत्कालीन राजकीय व्यवस्था के अनुसार पुरोहित परिवार की अपार सम्पत्ति राजकोष में जमा की जाने लगी। रानी कमलावती ने अपने पति को समझाया कि जिस सम्पत्ति को पुरोहित छोड़ रहा है, उसे वापिस लेना उसी तरह निन्दनीय है जिस प्रकार वमन किए हुए को पीना। रानी के उद्बोधन से राजा प्रतिबोधित हुए। अन्ततः राजा-रानी भी श्रमण-जीवन चर्या की ओर अग्रसर हो गए। ये छहों व्यक्ति साधना-क्रम में क्रमश: अग्रसर होते हुए मुक्ति प्राप्त करने में सफल हुए। भ्रमित कर सकने वाली विचारधाराओं का निराकरण करने के साथ-साथ सम्यक् ज्ञान का स्वरूप स्पष्ट करते हुए आत्मा को स्वाभाविक मार्ग पर अग्रसर होने की प्रबल प्रेरणा देने के कारण भी प्रस्तुत अध्ययन की स्वाध्याय मंगलमय है। 00 अध्ययन-१४ २३३ O
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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