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________________ 23:00 mm 亚米国米纸 र अध्ययन परिचय प्रस्तुत अध्ययन तरेपन गाथाओं से निर्मित है। इस का केन्द्रीय विषय है- अन्यत्व भाव की जागृति द्वारा विरक्तिमूलक सद्विवेक की प्राप्ति । इषुकार नगर की छह भव्य आत्माओं के रूप में यह विषय साकार हुआ है। इसलिए इसका नाम 'इषुकारीय' रखा गया। इन छह आत्माओं में से एक इषुकार नगर नरेश इषुकार की भी थी। इस नामकरण से राजा इषुकार सम्बन्धी वृत्तान्त का आशय भी व्यंजित होता है। आत्मा की सभी वैभाविक स्थितियों का सम्यक् ज्ञान ही अन्यत्व भाव की जागृति है। शरीर, सांसारिक सम्बन्ध, धन-सम्पदा, काम-भोग आदि आत्मा के स्वभाव नहीं, विभाव हैं। इन से ममत्व रखना व इनके लिये जीना अन्यत्व भाव में अपनत्व का अनुभव करना है। यह मिथ्यात्व है। कर्म-बन्ध का कारण है। सुख-दुःख का मूल है। शरीर व संसार को आत्मा का परभाव समझना मिथ्यात्व से मुक्त होना है। अन्यत्व भाव का जागृत होना है। विरक्तिदायक सद्विवेक का प्राप्त होना है। आत्म-कल्याण के द्वार का खुलना है। इषुकार नगर की छह भव्य आत्माओं के लिए ये द्वार खुले और उन सभी ने मुक्ति प्राप्त की। उन का वृत्तान्त सांसारिकता के त्याग और मोक्ष-पथ-स्वीकार करने का वृत्तान्त है। वृत्तान्त का सार इस प्रकार है-क्षितिप्रतिष्ठित नामक नगर में दो श्रेष्ठि-पुत्र थे। उनके श्रेष्ठ कुलीन चार मित्र थे। उक्त छहों ने विरक्त हो मुनि-चर्या स्वीकार की। मर कर वे छहों देव बने। उक्त चार मित्र देव-लोक से चलकर मनुष्य-भव में आए, और इषुकार नगर में उन्होंने भृगु पुरोहित, उसकी पत्नी (यशा), इषुकार राजा तथा उसकी रानी (कमलावती) के रूप में जन्म लिया। शेष दो श्रेष्ठियों के जीवों ने भी देव-लोक से च्यव कर, भृगु पुरोहित के घर, दो पुत्रों के रूप में जन्म लिया। पुत्रों के रूप में जन्म लेने से पूर्व उन देवों ने पुरोहित को मुनिवेश धारण कर धर्मोपदेश दिया और यह संकेत दिया कि उसके दो पुत्र होंगे जो मुनि बन कर जिन-शासन की प्रभावना करेंगे। भृग पुरोहित के मन में वैदिक/ब्राह्मण (यज्ञीय) संस्कृति के संस्कार अवशिष्ट थे, और उसकी यह धारणा थी कि पुत्रहीन की गति नहीं होती। उसने सोचा कि यदि मेरे पुत्र मुनि-दीक्षा ले लेंगे तो मेरा श्राद्ध आदि मरणोत्तर धार्मिक क्रियाएं नहीं हो पायेंगी और मेरी सुगति नहीं होगी। इसलिए उसने २३२ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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