SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Marria ११. (पुरोहित-प्रमुख का उत्तर-) “(अरे! यह) पक्व भोजन (तो) ब्राह्मणों द्वारा यहां अपने लिए ही तैयार किया गया (है, अतः यह) एकपक्षीय (अर्थात् मात्र ब्राह्मणों को ही देय) है । ऐसे अन्न-जल (खाद्य व पेय पदार्थ) को हम तुझे तो देंगे नहीं, (फिर) यहां खड़ा क्यों है?" १२. (श्रमण-शरीर में छिपे हुए यक्ष का उत्तर- "अरे भाई! जिस प्रकार) खेतिहर (अच्छी उपज की) आशा से (अतिवृष्टि की सम्भावना को ध्यान में रख कर 'ऊँचे') स्थलों (खेतों) पर (बीज बोते हैं) वैसे ही (अल्पवृष्टि की सम्भावना को ध्यान में रखकर) निचले (भूमि-क्षेत्रों) में भी बीज बो देते हैं। इस श्रद्धा (दृष्टि) से (ही आप) मुझे (भिक्षा) दे दें, यह (मेरा शरीर भी तो) निश्चित रूप से (एक) पुण्य-क्षेत्र है, इसकी भी आराधना कर लें ।” १३. (पुरोहित-प्रमुख का कथन ) “हम लोक में स्थित उन (सभी) खेतों को जानते हैं, जहां बिखेरे (बोए) गए (बीज) पुण्य रूप से या पूर्ण रूप से उग आते हैं। जो ब्राह्मण (उत्तम) जाति व (चौदह) विद्याओं से' सम्पन्न हैं (हमारी दृष्टि में) उत्तम / पुण्य-क्षेत्र तो वे (ही) हैं। १४. (यक्ष का कथन ) “जिनके (जीवन में) क्रोध, मान, वध (प्राणि हिंसा की प्रवृत्ति), असत्य भाषण, चोरी व परिग्रह (एवं अब्रह्मचर्य आदि दोष) हैं, वे ब्राह्मण (भी) जाति व विद्या से रहित हैं, (इसलिए) वे तो स्पष्टतः पाप-क्षेत्र (ही) हैं। " १५. (यक्ष का कथन ) “अरे (ब्राह्मणो!) तुम लोग तो यहां वाणी के भार को ढोने वाले (पशु के तुल्य) हो, तुमने 'वेद' पढ़ कर (भी उसके अर्थ को नहीं जाना-समझा है । (वास्तव में) उच्चव्रती (महाव्रती) (या १. शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, ज्योतिष-शास्त्र, निरुक्त, ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, मीमांसा, आन्वीक्षिकी, धर्मशास्त्र और पुराण-ये १४ विद्याएं हैं। उ अध्ययन- १२ १६६ 5
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy