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________________ ५. (४) अशील (शील / चरित्र से हीन) नहीं हो, (५) विशील ( कलुषित / दूषित चरित्र वाला) नहीं हो, (६) अत्यधिक (रस) लोलुपता रखने वाला नहीं हो, (७) अपराधी पर भी क्रोध नहीं करता हो, तथा (८) सत्य (या संयम) में रत (अर्थात् सत्यवादी व संयमी) हो। 11 AA ६. (जो) संयमी (इन) चौदह तरीकों से बर्ताव करता है, (वह) 'अविनीत' कहलाता है, और वह निर्वाण को भी प्राप्त नहीं करता । ७. (१) जो बार-बार क्रोध करता रहता हो, और (जो) (२) 'प्रबन्ध' (अर्थात् क्रोध को लम्बे समय तक, निरन्तर गांठ-बांध कर, उस) को बनाए रखने वाला (या विकथा आदि में प्रवृत्त रहने वाला, तथा अल्प-सत्य बोलने वाला) हो, (३) मैत्री किये जाने पर (भी उसे) ठुकराता हो (या मित्रता को तोड़ देता हो), तथा (४) श्रुत-ज्ञान प्राप्त कर 'मद' (अहंकार) करता हो । ८. (५) (जो) किसी के 'पाप' (स्खलना/त्रुटि) को (सार्वजनिक रूप से) उछालने वाला, प्रकट करने वाला हो, (६) मित्रों पर भी (जो) कुपित होता हो, तथा (७) अत्यन्त प्रिय मित्र की भी (जो) एकान्त (परोक्ष) में बुराई करता हो । ६. (८) (जो) इधर-उधर की असम्बद्ध (बातें) बोलते रहने वाला हो (या पात्र-अपात्र की परीक्षा किए बिना ज्ञान देने वाला हो, 'एकान्त' - दूषित दुराग्रहपूर्ण भाषण करता हो), (६) द्रोह करता हो, (१०) अभिमानी हो, (११) रसलोलुप हो, (१२) जितेन्द्रिय नहीं हो, (१३) असंविभागी (अर्थात् गुरु व संघस्थ मुनियों को उचित भोजनादि न देकर, आत्म-पोषण का ही ध्यान रखने वाला) हो, तथा (१४) (अपने व्यवहार से) 'अप्रीति' उत्पन्न करने वाला हो, वह अविनीत कहलाता है । अध्ययन- ११ १७७
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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