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________________ 3:2 EXEK baala इस संदर्भ में बीसवें अध्ययन 'महानिर्ग्रन्थीय' और इक्कीसवें अध्ययन 'समुद्रपालीय' की भी कुछ चर्चा अपेक्षित है। 'महानिर्ग्रन्थीय' के पूर्व-भाग में अनाथी मुनि व राजा श्रेणिक की कथा व दोनों के मध्य हुए संवाद वर्णित हैं। पैंतीस गाथाओं तक अनाथी मुनि अपनी जीवन-कथा राजा श्रेणिक को सुनाते हैं। छत्तीसवीं गाथा से सामान्यतः और अड़तीसवीं गाथा से विशेषतः मुनि-धर्म की व्याख्या - विवेचना प्रारम्भ होती है, जो बावन गाथाओं तक जारी रहती है। प्रश्न यह है कि मुनि-धर्म की व्याख्या - विवेचना करने वाले ये वचन भगवान् महावीर के हैं या अनाथी मुनि के? यह प्रश्न भी 'उत्तराध्ययन' की चर्चा में प्रायः उत्पन्न होता रहा है। सर्वविदित है कि राजा श्रेणिक भगवान् महावीर के समकालीन थे। अतः यह घटना भी प्रभु के समय की ही है। अनाथी मुनि द्वारा बताये गये वृत्तान्त से जब राजा श्रेणिक इस निष्कर्ष तक पहुंचे कि मुनि दीक्षा धारण करने से अनाथता मिट जाती है तो मुनि ने बतलाया कि अनाथता मिटाने के लिये मात्र मुनि-दीक्षा ले लेना ही पर्याप्त नहीं है। अनाथता तभी मिटती है जब सम्यक् मुनि-धर्म का पालन किया जाये। अब प्रश्न उत्पन्न हुआ कि सम्यक् मुनि-धर्म क्या है? इसी का समाधान अनाथी मुनि ने करते हुए सम्यक् मुनि-धर्म का स्वरूप स्पष्ट किया। भगवान् महावीर द्वारा निरूपित सम्यक् मुनि-धर्म को उन्होंने कहा। स्पष्ट है कि ये वचन उनके द्वारा कहे गये भगवान् महावीर के वचन ही हैं। इक्कीसवें अध्ययन ‘समुद्रपालीय' में दसवीं गाथा तक समुद्रपाल की चरित्र - कथा वर्णित की गई है। ग्यारहवीं गाथा से मुनि-धर्म के स्वरूप सम्बन्धी उपदेश प्रारम्भ हो जाते हैं। यह उपदेश किस के द्वारा और किस को दिये गये, यह कहीं नही बताया गया। दूसरे शब्दों में दसवीं और ग्यारहवीं गाथाओं के बीच सम्बन्ध स्वयमेव स्थापित नहीं होता। इस के लिये योजक की आवश्यकता पड़ती है। योजक से दसवीं और ग्यारहवीं गाथाओं के बीच सम्बन्ध भी स्थापित होता है और इस प्रश्न का समाधान भी होता है कि मुनि-धर्म का यह उपदेश किस ने और किस को दिया। MAS S
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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