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________________ ३४. हे गौतम! तुम अति-विशाल सागर को (तो) पार कर (ही) चुके हो, (अब) तीर पर (जैसे) पहुंचकर (भी) क्यों खड़े हो गए हो ? पार जाने के लिए शीघ्रता करो, (और) क्षण भर का (भी तुम) प्रमाद न करो । ३५. हे गौतम! अशरीरी होने की विचार श्रेणी (क्षपक श्रेणी) पर आरूढ़ होकर तुम कल्याणकारी, 'शिव' स्वरूप व अनुत्तर 'सिद्धि' (नामक) लोक ( सिद्धालय) को प्राप्त करोगे । (इसलिए) क्षण भर का (भी तुम) प्रमाद न करो । ३६. (हे गौतम!) गांव में (रहो) या नगर में, संयत (सम्यक् यतनाशील, पाप-विरत व अनासक्त), प्रबुद्ध (तत्वज्ञ) और उपशान्त होकर विचरण करो, और शान्ति-मार्ग (दशविध यति-धर्म, निर्वाण व उपशम के मार्ग) को संवर्द्धित करो, हे गौतम! (इस कार्य में) क्षण भर का (भी तुम) प्रमाद न करो । ३७. प्रबुद्ध (भगवान् महावीर) की अर्थप्रधान पदों से अलंकृत, तथा सुन्दर रीति से कही गई वाणी को श्रवण कर, राग-द्वेष का उच्छेद करते हुए गौतम स्वामी ने सिद्धि-गति (मोक्ष) को प्राप्त किया । -ऐसा मैं कहता हूँ । अध्ययन- १० 00 १६६ COCON
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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