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२३. तेरा शरीर (प्रतिक्षण) जीर्ण (जराग्रस्त) होता जा रहा है, तुम्हारे
केश (भी) सफेद होते जा रहे हैं, और सूंघने की वह शक्ति भी (जो पहले थी, अब) क्षीण होती जा रही है, (इसलिए) हे गौतम! क्षण भर का (भी तुम) प्रमाद न करो।
२४. तेरा शरीर (प्रतिक्षण) जीर्ण (जराग्रस्त) होता जा रहा है, तुम्हारे
केश (भी) सफेद होते जा रहे हैं, और जिह्वा की (रस चखने की) वह सामर्थ्य (जो पहले थी, अब) क्षीण होती जा रही है, (इसलिए) हे गौतम! क्षण भर का (भी तुम) प्रमाद न करो।
२५. तेरा शरीर (प्रतिक्षण) जीर्ण (जराग्रस्त) होता जा रहा है, तुम्हारे
केश (भी) सफेद होते जा रहे हैं, और स्पर्श (अर्थात् मृदु-कठोर, शीत-उष्ण आदि विविध स्पर्श सम्बन्धी अनुभव) की वह शक्ति (जो पहले रही, अब) क्षीण होती जा रही है, (इसलिए) हे गौतम!
क्षण भर का (भी तुम) प्रमाद न करो । २६. तेरा शरीर (प्रतिक्षण) जीर्ण (जराग्रस्त) होता जा रहा है, तुम्हारे
केश (भी) सफेद होते जा रहे हैं, और सभी (तरह की शारीरिक) वह शक्ति (जो पहले थी, अब) क्षीण होती जा रही है, (इसलिए) हे गौतम! क्षण भर का (भी तुम) प्रमाद न करो।
२७. 'अरति' (अर्थात् वात-पित्त रोग आदि से उत्पन्न उद्विग्नता),
फोड़ा-फुन्सी, हैजा-अतिसार (आदि जैसे) विविध आतंक (सद्यः प्राणहारक रोग) तुम्हें स्पर्श (आक्रान्त) कर (सक) ते हैं (जिनसे) तुम्हारे शरीर का पतन व विनाश हो (सक) ता है, (इसलिए)
हे गौतम! क्षण भर का (भी तुम) प्रमाद न करो । २८. जिस प्रकार, शरत्कालीन 'कुमुद' (चन्द्र को देखकर विकसित
होने वाला रक्त-कमल) पानी (में उत्पन्न होकर भी, पानी से ऊपर उठ कर, उस) को (स्पृष्ट नहीं करता हुआ निर्लिप्त रहता है) उसी प्रकार तुम अपने 'स्नेह' का विच्छेद कर दो, (और)
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