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________________ परिवार का परित्याग कर वन में चले गये। नमि राजर्षि का वैराग्य कितना दृढ़ है, इसे परखने के लिये देवराज इन्द्र ब्राह्मण का वेश धारण कर उनके सामने उपस्थित हुए और उन से दस प्रश्न किये। उनका समाधान नमि ने महान आध्यात्मिक, दार्शनिक दृष्टि से दिया। देवेन्द्र द्वारा 'नमि' राजर्षि के समक्ष जो प्रश्न उपस्थपित किये गये, उन में ब्राह्मण संस्कृति के अनुरूप आग्रह छिपा है। देवेन्द्र यह प्रतिपादित करना चाहते थे कि ब्राह्मण (वर्णाश्रम) संस्कृति के अनुरूप यज्ञों का सम्पादन तथा क्षत्रियोचित प्रशासनिक उत्तरदायित्व का निर्वाह करते हुए गृहस्थाश्रम का सम्यक् पालन कर जीवन के उत्तरार्ध में संन्यास-आश्रम स्वीकार करना उचित होता है। किन्तु नमि राजर्षि श्रमण संस्कृति की दृष्टि से अपने प्रव्रजित होने का पूर्ण औचित्य सिद्ध करते हैं। देवेन्द्र व नमि के उक्त संवाद के माध्यम से प्रस्तुत अध्ययन में वैदिक/ब्राह्मण व श्रमण संस्कृति के तात्विक ज्ञान की पृष्ठभूमियों का अन्तर स्पष्ट हो जाता है। किसी भी वर्ण का व्यक्ति हो, विरक्ति का भाव जब भी उठे, तभी वह मुनि-प्रव्रज्या ग्रहण कर सकता है। सांसारिक प्रभुता, राज्य-विस्तार व विषय-भोग की तुलना में अनासक्ति व अपरिग्रह के माध्यम से की जाने वाली आत्मिक विजय व आत्मिक शुद्धि अधिक श्रेष्ठ है। ये तथा श्रमण संस्कृति के अन्य मूल आधार अकाट्य युक्तियों के साथ यहां उजागर हुए हैं। उक्त दृष्टि से प्रस्तुत अध्ययन का समूचे 'उत्तराध्ययन' में एक विशिष्ट स्थान माना जाता है। राजर्षि नमि व देवेन्द्र के बीच हुए प्रश्नोत्तर श्रमण व ब्राह्मण संस्कृति के साथ-साथ सम्यक्त्व व सांसारिकता के बीच होने वाले प्रश्नोत्तर भी हैं। राजर्षि नमि के उत्तर वस्तुतः सम्यक् ज्ञान द्वारा प्रदत्त समाधान हैं। इनके आलोक में अपने जीवन को वांछनीय व सम्यक् स्वरूप देने की प्रेरणा के साथ-साथ इसका मार्ग प्रदान करने के कारण भी प्रस्तुत अध्ययन की स्वाध्याय मंगलमय है। 00 अध्ययन-६ १२७
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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