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छग अध्ययन : क्षुल्लक निम्रन्थीय
१. जितने (भी) 'अविद्या' (यथार्थ ज्ञान के अभाव से, या मिथ्याज्ञान)
से युक्त पुरुष होते हैं, वे सब दुःखों (या दुःख-जनक पापों) के पात्र (या सर्जक) होते हैं। (अविद्या से) मूढ़ बने हुए (वे प्राणी) अनन्त संसार में अनेकों बार लुप्त होते हैं-विनाश को
प्राप्त होते हैं। . इसलिए 'पण्डित' (विद्यासम्पन्न व्यक्ति) विविध (कर्म) बन्धनों
और जन्म (व मरण) के मार्गों (८४ लाख जीव योनियों, तथा उनके स्रोत-कारणों) की समीक्षा करे, स्वयं 'सत्य' (आत्महित, संयम व यथार्थ ज्ञान) की खोज करे, तथा प्राणियों के प्रति मैत्री
भाव बनाए रखे। ३. अपने (स्वयं के ही) कर्मों से विनष्ट हो रहे मेरे जीवन की रक्षा
करने में माता, पिता, पुत्र-वधू, भाई, पत्नी तथा औरस (अपने सगे) पुत्र-ये सभी समर्थ नहीं होते हैं ।
४. सम्यग्द्रष्टा (पुरुष) इस अर्थ (उक्त कथन) को अपनी सम्यक्
बुद्धि से देखे-विचारे, (धनादि के प्रति) आसक्ति व (बन्धु-जनों के प्रति) स्नेह का उच्छेद करे, तथा (किसी के साथ अपने) पूर्व-परिचय की (भी) आकांक्षा न रखे।
५. गौ, घोड़े, मणि-कुण्डल (आदि आभूषण), पशु, दास व (सेवारत)
पुरुषों के समूह-इन सब को त्याग कर (ही) तू कामरूपधारी (इच्छानुसार रूप धरने में समर्थ देव या ऋद्धिसम्पन्न व्यक्ति) हो जाएगा।
अध्ययन-६
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