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________________ पEO पाँचवाँ अध्ययन : अकाम-मरणीय १. (इस) महाप्रवाह वाले दुस्तर संसार-सागर से कुछ (महापुरुष) पार हो चुके हैं। उनमें एक महाप्राज्ञ (भगवान् महावीर) ने इस (बात/प्रश्न) का स्पष्ट विवेचन/समाधान किया थाः २. मृत्यु रूप 'अन्त' समय के ये दो स्थान (भेद) कहे गए हैं- (१) अकाम-मरण और (२) सकाम मरण । ३. बाल (व्रत-नियमादि-रहित जीवों) के तो 'अकाम-मरण' बार बार हुआ करता है। किन्तु ‘पण्डितों' (चारित्री पुरुषों) का 'सकाम-मरण' (होता है, और वह भी) उत्कृष्टतः (जैसे 'केवली' के) एक बार होता है। ४. (भगवान्) महावीर ने इनमें से प्रथम 'स्थान' (अकाम-मरण रूप भेद) का (इस प्रकार) उपदेश किया हैकाम-भोगों में आसक्ति रखने वाला 'बाल' (अज्ञानी) व्यक्ति अत्यधिक क्रूर (हिंसादि) कर्म किया करता है। ५. जो कोई काम-भोगों में आसक्ति रखता है, वह 'कूट' (झूठ बोलना, पशु आदि की हिंसा करने से नरक-प्राप्ति) की ओर गतिशील हो जाता है। (वह सोचता है कि) “परलोक तो मैंने देखा नहीं, (परन्तु) यह ‘रति’ (विषय-सुख तो) आंखों से प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रहा है। अध्ययन-५ ७३
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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