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________________ ६८ ध्यानकल्पतरू. मेंद, चरवी, और मृत्यूक जानवरोंके कलेवर, खान, पान, पक्कान, तंबोल, औषधीयों, अतरादी तेल, शैय्या (प. लंगादी),आसन,स्त्री-पुरुषके शृंगारके वस्त्र, भुषण. का. मासन, स्त्रीयादीके चित्र, इत्यादी द्रव्य होय, वहां ध्यानीयोंका चित स्थिर रहना, मनका निग्रह (वस) होना मुशकिल हैं. __४'शुभद्रव्य-शुद्ध' निर्जिव पृथवी-शिल्लापटपेकाष्टासन-पाट बजोट (चौकी) पें. पारलके आसनपे उन, सूत, आदी शुद्ध वस्त्र ध्यानस्त होनेसे प्रणाम स्थिर रहनेका संभव है. ध्यान इच्छककों अहार थोडाकर सो भी हलका [तांदुलादी] विशेष घृत माशालेसे वनार्जित, शीतादी कालमें, प्रकृतीयोंको अनुकुल [सुखदाता] वक्तके, और बजनके, प्रमाणयुक्त; निर्जिव, और निर्दोष, शुद्ध, करनेसे चितको स्थिर रख शक्ते हैं. • ध्यान इच्छकको-आसन; मुख्यतो पद्मासन [पालखी घाल दोनो सायलोंपें दोनों पग चडा दोनों हाथ एकस्थान विकसे कमलके समकर, पेटके पास नीचे रखके स्थिर होय] पांकासन [पालखी घाल बेठे] दंडासन [खडेरहे] ये तीन हैं.और तो वीरासन, लगडासन, अम्बखुजासन, गौदूआसन, वगैरेसे इस व
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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