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________________ Aur उपशाखा-शुभध्यान. ६७ जुवा खेलते होय, कैदी रहते होय, मद्य मांस (दारू) विकता होय, पारधी रहता होय, सिल्पिक (कारीगर चमार, सोनार, लोहार, रंगारे, इत्यादी) रहते होय. वहां चितविग्रह होनेका संभव है. जहां नपुशक. पशु (तिर्यंच) कुलंछनी, भांड, नट, खट, इत्यादि अयोग्य रहते होय. वहां, अप्रतीत होनेका संभव हैं. इत्यादि अयोग्य स्थान बर्जके ध्यान करे. २ 'शुभ क्षेत्र' निर्जन स्थान-जहां विशेष मनुप्यादीकी वस्तीया, आवा गमन न होय. समुद्रके, तथा नदीके तट (किनारे) पर, बृक्षोके समोहमें, बेलीके मंडपोमें, प्रवतोकी गुफामें, स्मशाणोंकी छत्रीयोंमें, सखे झाडकी कोचरमें, शुन्य ग्राम या शुन्य गृह (घर) में, वरोक्त ( जो अशुद्ध क्षेत्रमें कही उन) बावतोंसे वर्जित, देवालयमें. इत्यादि स्थान फ्रासुक (निर्जीव) होय, वहां ध्यान करने योग्य स्थान हैं. चितमें समाधी (शांती) रहती हैं. द्वितीय पत्र-“द्रव्य.” ३'अशुभ द्रव्य'-जहां अस्थि, मांस, रक्त, चर्म' ॐ अफोव मंडवमि. झायइ झोवियासवे-उत्तराध्येयन१८ अर्थ-अफाव (नागरवेल) के मंडपमें ध्यान ध्याते है. आश्रवको
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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