SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ध्यानकल्पतरू. यह सम्यक्त्वी, देशबृती, और सर्ववृर्ती, कर्मोंके उपशम क्षयोपशम, व क्षायकताके योग्यसे निश्चय में प्रबृती करसक्ते हैं. और इन सिवाय ज्ञानारणव . ग्रन्थमें ध्यानीके ८ लक्षण कहे हैं--- FREE मुमुक्षर्जन्म निर्विणः शान्तचितोवशीस्थिर; " जिताक्ष संवृतोधीरो, ध्याता शास्त्रेप्रशस्यते. ___अर्थ १ मुमुक्षु आर्थत् मोक्ष जाने की जिसे अभीलाषा होवेंगा वोही ध्यानका कष्ट सहेगा; आत्म निग्रह करेगा. २ विरक्त-जिनका पुग्दल प्रणित सुखोंसे बृती निवृती है. उन्हीके प्रणाम ध्यानमें स्थिरता करेंगे, ३ शांतवृती-जो परिसह उपसर्ग उपनेशांत प्रणाम रखेंगे, वोही ध्यानका यथातथ्य फल प्राप्त कर सकेंगे, ४ स्थिरस्वभावी जो मनादी योगोका कुमार्ग से निग्रह कर, ध्यानमें वृतीको स्थिर करेंगे, वोही ध्यानी हो सकेंगे, ५ स्थिरासनी जिसस्थान ध्यानस्थ हो, वहांसे चल विचल न करे; व ध्यानके कालतक आसन बदलें नहीं; वोही सिद्धासनी कहै जाते है.जितेंद्रिय श्रोतादी पंच इंद्रिययोंको, शब्दादी पंचविषयसें, रागद्वेषकी निर्वृती कर, धर्म मार्गमें संलग्न करेंगे, वोही ध्यान सिद्धीको प्राप्त होवेंगे ७ संवतातमा जिन्नने mh oar शामको मंजत कर. हिंशादी पंचाश्रा
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy