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ध्यानकल्पतरू. ५९ ___२ अधः पृवृती करणका अंतर मुहुर्त काल व्य. तीत भये, दूसरा अपूर्व करण होता हैं. अधः करणके प्रणाम सें, अपूर्व करणके परिणाम असंख्यात लोक गुणें हैं, सो बहुत जीवोंकी अपेक्षा सें; परन्तु एक जी व की अपेक्षासें तो एक समय में एकही परिणाम होते है; और एक जीवकी अपेक्षालें तो, जित्ने अंतर महुर्त के समय है, उलेही होते हैं. ऐसेही अधःकरण के भी एक समय में एक परिणाम होवें है. और बहोत जीवकी अपेक्षासें असंख्य परिणाम जाणनें. अपूर्वकरणकभी परिणाम समय रसदश कर बृधमान होते हैं. इस अपूर्वकरणके परिणाममैं नीचे के समयके परिणाम तुल्य, उपरके समयके प्रणाम नहीं हैं. प्रथम समयकी उत्कृष्ट शुद्धतासे, द्वितीय समयकी जघन्य शुद्धता अनंत गुणी हैं. ऐसे परिणामका अपुर्व पणा हैं. इसलिये इसका अपूर्व करण नाम है.
अपूर्व करणके पहले समय से लगाके अंतःसमय तक अपने जघन्यसे अपना उत्कृष्ट, और पूर्व सम यके उत्कृष्टसें उत्तर समय के जघन्य, यों कर्मके परिणाम अनंतगुणीविशुद्ध लिये, सर्पकी चालवत् जाणना. ह्यां अनुत्कृष्टी नहीं हैं. अपूर्व करणके पहले समयसे गाले नाaa ममा- कोळी 7 कोटी मा