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___ ५८ उपशाखा-शुभध्यान. सो भी अंतर महुर्त प्रमाणे ही हैं. और भी इस अधः प्रवृती करण कालके विषय, अतीतादी त्रिकाल वृती अनेक जीव समंधी, इस करणकी विशुद्धतारूप प्रणाम असंख्यात लोक प्रमाणे हैं, वो प्रणाम अधः प्रवृती करणके, जित्ने समय हैं. उत्नेमें सामान बृधी लिये, समय २ में बृधी होते हैं, इससे इस करणके नीचेके समयके प्रणामकी संख्या और विशुद्धता, उप र के समय वर्ती किसी जीवके प्रणाम से मिलें हैं, इससे इसका नाम अधःप्रवृतीक है. इस अधः प्रवृति करण के चार आवश्यक-१समय २ प्रते अनंतगुण विशुद्धता की बृधी. २ स्थिती बन्ध श्रेणी, अर्थात् पहले जित्ने प्रमाण लिये कर्मका स्थिती बन्ध होताथा, उसे घटाय २ स्थिती बंध करे. ३ साता वेद निय आदी दे प्रसस्त कर्म प्रकृतीका समय २ अनंतगुण वृद्धी पाते; गुड, सक्कर, मिश्री और अमृत, समान चतुस्थान लिये अनुभाग वन्ध है. ५असाता वेदनीआदी अ. प्रसस्त कर्म प्रकृती, समय २ अनंतगुण कमी होती नीं ब, कांजी, समान द्धि स्थान लिये, अनुभाग बंध होता है, परन्तु हलाहल जैसा नहीं. यह ४ आवश्यक जाणनें. ..+ अंता पर्त के भेट असंख्य हैं.