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________________ ६० ध्यानकल्पतरू : पूर्ण काल जो जिस कालमें गुण संक्रमण कर, मिथ्याव को सम्यक्त्व मोहनी, मिश्र मोहनी, रूप प्रगमावें, उस कालके अंत समय पर्यंत. १ गुणश्रेणी, २गुणसंक्रमण, ३स्थिती खंड, ४ और अनुभाग खंडन, यह चार आवश्यक हो. और भी स्थिती बंध श्रेणी है सो अधः करण के प्रथम समय से लगा. गुण संक्रमण पूर्ण होनेके कालपर्यंत होवें हैं. यद्यपी प्रयोग लब्धीसे ही स्थिती बन्धाके श्रेणी होती है, तथापी प्रयोग लब्धीसे सम्यक्त्व होनेका अनवस्थित पना है, यह नियम नहीं; इसलिये ग्रहण नहीं किया. और भी स्थिती बन्ध - णीका काल, और स्थिती कांड कान्डोत्करणका काल यह दोनी सामान अंतर मुहुर्त मात्र हैं. वहां पूर्व बंधाथा ऐसा सत्ता में कर्म परमाणु रूप द्रव्य उसमेसें निकाले, जो द्रव्य गुण श्रेणीमें दीये, उस गुप्ज़ श्रेणीके कालमें समय २ में असंख्यात गुणा अनुक्रम लिये पंक्ती बंध जो निर्जरा का होना, सो गुण श्रेणी निर्जरा हैं. २ और भी समय २ प्रते गुणाकारका अनुक्रम ते विविक्षित प्रकृती के प्रमाणु पलट कर, अन्य प्रकृती रूप होकै प्रणमें सो गुण संक्रमण. ३ पूर्व बन्धीथी वो सत्ता में रही कर्म प्रकृतीकी स्थितीका घटाना सो स्थि श्री है और पर्व बन्धे थे. ऐसे सत्तामें रहा
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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