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ध्यानकल्पतरू.
यह तीन लब्धी कर संयुक्त जीव, समय २ विशुद्धता की वृधी कर, आयू विन सात कर्मकी, अंतः कोटा कोटी सागर मात्र स्थिती रहे; उस वक्त जो पूर्व स्थि ती थी, उसे एक कांडक घात (छेद) कर उस कांडके द्रव्यकी, शेष रही हुइ स्थिती, विशेष निक्षेपण करे, और घातिक कर्मका, अनुभाग (रस) सो काष्ट तथा लता रूप रहै, परं शैल (प्रवत) स्थिती रूप नहीं. औ र अघाती कर्मका अनुभाग, नींब या काँजी रूप रहे. परं हलाहल विष रूप नहीं. पूर्वे जो अनुभाग था उसे अनंत का भाग दे, बहुत भाग अनुभागका छेद, शेष रहा अनुभाग विषय प्राप्ती करें हैं. उस कार्य करनेकी योग्यताकी प्राप्ती, सो “प्रयोगता लब्धी* और भी संक्लेश प्रणाम, सज्ञी पन्द्रि पर्याप्ताके जो संभवै, ऐसे उत्कृष्ट स्थिती बन्ध, और उत्कृष्ट स्थिती अनुभाग का सत्व होतें, जीव के प्रथम उपसम सम्यक्त्व नहीं ग्रहण होवे हैं. तथा विशुद्ध क्षपक श्रेणी विषे संभव ते, ऐसा जघन्य स्थिती बन्ध, और जघन्य स्थिती अ. नुभाग प्रदेशका सत्व होतें भी सम्यक्त्व की प्राप्ती नही होवें, प्रथम उपशम सम्यक्त्व के सन्मुख हुवा जो
* यह प्रयोगता लब्धी भव्य अभव्यके सामान्य होवे है.