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उपशाखा-शुभ-यान.
"पंचलाधी" १क्षयोपशमलब्धी, २ विशुद्धलब्धी, ३ देशना लब्धी, ४प्रयोग लब्धी, और पमी करण लब्धी, इन पंच लब्धीयोंकी यथाक्रम प्राप्ती होणेंसेही, सम्यक दर्शनकी प्राप्ती होती हैं. चार लब्धी तो कदाचित भव्य तथा अभव्य के भी होती हैं. परन्तु करण लब्धी तो जो सम्यक्त्व और चारित्र को अवस्य प्राप्त होने वाले हैं उन्हेही होवेंगा. . अब "पंचलब्धीका स्वरूप” बतातें हैं
१ जिस वक्त ऐसा जोग बनें की, जो ज्ञानावर्णियादिक अष्ट कर्मकी सर्व अप्रसस्त प्रकृतीकी शक्तीका जो अनुभाग, सो समय २ प्रते अनंत गुण कमी होता, अनुक्रमें उदय आवे; तब क्षयोपशम लब्धीकी प्राती होवे. २क्षयोपशम लब्धीके प्रभाव से जीवके साता वेदनिय आदी, शुभ-प्रक्रतीके बन्धका कारण, धर्मानुराग रूप, शुभ प्रणामकी प्राप्ती होय, सो दूसरी विशुद्ध लब्धी.* ३ छे द्रव्य नव पदार्थका श्वरूप, आचादिकके उपदेश से पेछाणे, सो देशना लब्धी.'
* अशुभ कर्मोंका रमोदय बटन में क्लश प्रणाप की हानी होवे, तब विशुद्ध प्रणाम की वृद्धी स्वभावरी होती हैं. ___ + नर्कादी म्थानमें उपदेशक नहीं हैं वहां, पूर्व जन्मक धारे arबके संस्कार में मम्यम्त होता है.