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द्वितीयशाखा-रौद्रध्यान. ४९ करे. उनको त्रासते तडफते देख खुशी होवे.. ज्यादा २ संताप उपजावे. निडर नियूर, पाप-अकार्य करता बिलकूल अवकाय नहीं, झूट बोलता डरे नहीं, चोरीसे हटे नहीं. भैथुन क्रियामें अती आशक्त (लुब्ध) परिग्रहकी अत्यंत मुर्छा, क्रोध, मान, माया लोभ, की अति प्रबलता. राग द्वेषका घर. महा क्लेशी, चुगलखोर, गुणीके गुणका ढांकनेवाला. उनके सिर खोटा आल (बज्जा) देनेवाला, अपनी वस्तुपे अत्यंत प्रेमी दूसरेकी वस्तुका अत्यंत द्वेषी, दगाबाज, उपर मीठा
और मनमें चीठा. कुगुरु, कुदेव, कुधर्मपे श्रधा, प्रतीत, आसता रखनेवाला; इत्यादि अष्टादश (१८) पापमें, अनुरक्त, धर्मका नाम मात्र अच्छा नहींलगे, मृत्युके बीछोनेपे पडा (मृत्यु नजीक आयेपर) भी, अपने किये हुये कर्मका बिलकुलही पश्चाताप नहीं होवे, ऐसा कठोर, घर कुटंबमेंही अत्यंत लुब्ध, ऐलेभावसहीत प्राण छोड (मरके) अन्यगतीमें सिधावे सो अमरणांत दोष नामे लक्षण जाणने. - "रौद्रध्यानके पुष्प और फल"
रौद्रध्यानीके सदा कर प्रणाम रहते हैं. मद, मत्सरसे पूर्ण हय भरा होता हैं. अहो निश पापिष्ट .