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. ध्यानकल्पतरू. " धर्मको त्याग,हिंशाधर्ममें राचे,कामी,कपटी,लोभी,कन्क कन्ता धारी, स्त्रीके भोगी, धूप पुष्प अतर अबीरादी की सुगंधमें मस्त रहने वाले, सचित अहारी या मांस मदीरा भोगवने वाले, रंगीबेरंगी वस्त्रो और भूषणासे सरीरको अंगारने वाले, रुष्ट हुये नाश करे, और तुष्ट हुये इच्छा पुरे, ऐसे राग द्वेषसे भरे हुये; इत्यादी अनेक दुर्गुण धारीको देव गुरु जानकै माने पूजे, भक्ती करे. त्यागी, वैरागी, शांत, दांत, वितरागी देव गुरुका त्याग करे. अपमान करे, इन्द्रीयों और कषायकी पोषणतामें धर्म और आत्माका कल्याण समजे, सच्चे कामोपर अरुची, और कूकामो पर रुची जगे, ये सब अणाण दोष (अज्ञान दोष) नामे रौद्रध्यानीके लक्षण जाणना.
चतुर्थ पत्र “अमरणांत दोष”
४ “ अमरणांत दोष सो"-रौद्रध्यानीका वज़ जैसा कठिण हृदय होता है, दुसरेके सुख दुःखकी उसे बिलकुलही दरकार नहीं रहती है, वो फक्त आपनाही सुख चहाता है; अपनेंसे अधिक दूसरेको देख दुःखी. होवे, और उसके यश सुख का नाश करने अनेक उपाय करे. निर्दयता कर प्रणामसे त्रस थावरका वध (घात)