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द्वितीयशाखा-रौद्रध्यान ४७ विशेष करे अर्थात ज्यों ज्यों करे त्यों त्यों ज्यादा २ इच्छा बडती जाय. और इच्छा को त्रप्त करन अधिक २कर्ताजाय, परंतु प्रती आय ही नहीं, उसे बऊल दोष कहना.
तृतीय पत्र-“अज्ञान दोष.” .. __ ३ “अणाण दोष” सो- रौद्रध्यानका खभावहीं है, के वो उत्पन्न होता तर्त सज्ञानका नाशकर, जीवको अज्ञानी मुढबना देता हैं. सूकार्यसे प्रिती उतार, कुकार्यमें संलग्न कर (जोड) देता हैं. सत्सान श्रवण, सत्संगमें अप्रिती अरुची होती है, और २९ पाप सूत्रोंके अभ्यासमें प्रिती होवें. विषयमें प्रवृति करावे, ऐसी कवीता, कल्पित ग्रंथो, कोकशास्त्र, वगैरे पढे सुणे,
और कूशास्त्रकी, जिसमें हिशा झूट, चोरी, मैथुन, वगैरे पाप सेवनमें निर्दोषता बताइ होय; उनका तथा वसीकरण,उचाटन,अकर्षण,स्थंभनादी विद्याका अभ्यास करे गालीयों गावे, ठठा, मस्करी करे. पुरुषोंको स्त्रीयोंके वस्त्र भुषण पेहरायके,नृत्य,गान,कुचेष्टा करावे; दयामय उत्तम
* २९ पापसूत्र-१मूमीकंप, २ उत्पात, ३स्वपन, ४अंगफरकनेका, १ उलका पातका, ७पक्षीयोंके श्वरका [कोक] ७व्यंजन तिलमसका, (लक्षणासामुद्रिक, इन र के अर्थ-पाट, और कथायों ८:=२४ और २५ कामकथा, २६ विद्या रोहणायादी २७मंत्र, २८तंत्र, २९अन्यमतीके आचारके.