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ध्यानकल्पतरू.
आगरों (खदानो) मोतीयोंके लिये, बेंद्री सीपोंको चिरावे, सण, कापासादी, पिलाये, कतावे, गिरनीयादी द्वारा वस्त्रादी बनवावे, अनेक श्रंगारसजे, या स्त्रीयादी को श्रंगारके उनके नाटक ख्यालादी देखे. बगीचादी लगावें. घणेंद्रीके पोषणे, यंत्रादी प्रयोगसे अत्रादी निकला वे पुष्पादी सुगंधी द्रव्यका सेवन करे, पुष्पवटिकादी बनाके उपभोगलेवे, रसेंद्री पोषणे, मंदिरा, मंस, भोगवें. कंद, मूल, आदी अभक्ष खावे, पोष्टिक उन्मादिक वस्तुका सेवन करे, रसायन भस्मादी सेवन करे, वंदेजकी गुटिकादी सेवन कर महा कामी बने, स्पर्शादी के पोषणे, अनेक पुष्पादी सेजका सयन, उत्तम वस्त्र भुषणोसे शृंगार सज, हार, तुर्ररे, अंतर, पुष्पादीसे सरीर सज, चंचूं करती पगरखीयों पहर, अकड मकड चले, वैस्यादी नृत्यमें अगवानी भागले. गान तानमें गुलतान बन तान तोडे. मशगुल बन जावे, कामके चौरासी असनोकी तसवीरों का वारंवार अवलोकन करे, इत्यादि तरह पचेंद्रीके पोषणके लिये जो उपायोंकी योजना करे, उसे उसन दोष नामें रौद्रध्यानी समजना.
द्वितीय पत्र- "बहुल दोष.”
" बहुल दोष" सो. वरोक्त इन्ही कामोंको