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द्वितीयशाखा-रौद्रध्यान. ४५ (घाव पडजाय) ऐसे बंधनसे बांधे, कठोर प्रहार करे अहार पाणीकी अंतराय देवे. अंगोपांग छेदन भेदन करे. सत्ता उप्रांत काम लेवे. मेहनत करावे. सदा निर्दय होके, अयत्नासे एकांत स्वार्थ साधने, या विना, कारण अन्यकों संताप उपजाने, वरोक्तादी जो जो कृतव्य करे, उसे रौद्र ध्यानी समजणा
ऐसेही-झूटका पोषण करने अनेक पाप शास्त्रकाम शास्त्र, कांदम्बरी, पठन करे; झूटे झगडे जीतने अनेक चालाकोंकी संगत, व कायदे-कानूनोंका अभ्यास, करे, झूटे ख्याल कविता बनावे, चकार, मकारादी गालीका उच्चार करे; विभत्स (अयोग्य) शब्द बोले, निडर, निर्लज होके प्रवृते. ऐसेही चोरीकी पुष्टीके, लिये, चोरोंके शस्त्र; कोश, कुदाल, गुप्ती, वगैरे संग्रह करे, चोरी कलाका अभ्यास करे. गोआदि जानवर पाले, चोरोंकी संगतमें रहै, धाडापाडे, चालाकीसे अन्यका माल हरण करे, और विषय संरक्षणके पोषणकेलिये, श्रोतेंद्रीके पोषणके लिये मृदंगादी बणाने जीवते पशूवोंका चर्म (चमडा) निकलावे. सारंगीयादी बनाने. गवादीकी आंतो (नशो) तोडावे, चक्षू इंद्रीके पोषण को अंगार, समुग्री, सजाने, सुवर्ण रत्नोंके अनेक