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________________ ४४ - ध्यानकल्पतरू. प्रथम पत्र-“उषण दोष.” १उषण दोष, सो हिंशा, झूट, चोरी, और विषय संरक्षण, इन ४हीकी पोषणताके लिये, जो जो काम करे सो उषण दोष. जैसें-हिंशाकी पोषणता (वृधी) करने. अनेक, पावडे, कोदली, खुर, वगैरे पृथवीको खोदने फोडनेके शास्त्रका संयोग मिलावे. अधूरे होय तो हाथालगा, धार सुधरा पूरे करावें, और पृथ्वी छेदन भेदनके आरंभमें उन्हे लगावे. एही पाणीके आरंभकी बृधीके लिये चडस, रहेंट, मशक या घडा, क लशा, वगैरे वृतनो. कूवा,वावडी,तलाव,नल,फुवारे,होद, आदी स्थान बणवाके पाणीका आरंभ करे करावे, अग्नीके लिये चूले, भट्टी, दीवे, चिलमो, आतसबाजी, वगैरे करावे औरको उस काममें लगावे. हवाके आरंभके लिये, पंखी, पंखा, बाजिंत्र, वगैरे. हरीके आरंभकेलिये बाग, बगीचे, वाडी, इत्यादि लगावे. या पत्र पुष्प फल, त्रणादीका छेदन, भेदन, पचन, पाचन. भक्षण, करे करावे, त्रसके आरंभकेलिये धूम्रदिक प्रयोगसे मच्छर डांस,षटमल आदीकोमारे जाल फासासे जलचर,वनचर, खेचर आदीको कब्जे करे. तरवार भालादी शस्त्रसे छेदन भेदन ताडन तर्जन करे. मनुष्य पस्यूको कठिण
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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