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द्वितीयशाखा-रौद्रध्यान.
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तात्पर्य यह है की इस ध्यानमें विशेष कर. अपणा स्वरक्षण और अन्यको परिताप उपजानेका विचार बनारहै. इसलिये इसे रौद्र (भयंकर) ध्यान कहा हैं. द्वितीय प्रतिशाखा-“रौद्रध्यानीके लक्षण" Serecess रोदस्सणं झाणस्स चत्रारि लरकणा पन्नं
* ता तंज्जहा, उसणदोसे, बहुलदोसे, अ
णाणदोसे, अमरणांतदोसे. अर्थम्-रौद्रध्यानीके ४ लक्षण, १हिंशादी पापोंका विचार करे, २विशेष (अखंड) विचार करे. ३अज्ञमनीयोंके शास्त्रका अभ्यास करे. ४मृत्यू होवे वहां लग पापका पश्चाताप करे नहीं.
- सैद्र-भयंकरही जिस ध्यानका नाम, उसका विचार, कृतव्य, और स्वरुप भयंकर होवे, यह तो स्वभाविक हैं. विचार मगजमें रमण कर अकृती धारण कर, उसही कार्यमें प्रवृतने शरीरकी प्रेरना करताहैं.
रौद्र ध्यान (विचार) होनेसे, रौद्र कार्यके विषयमें जो प्रवृती होती हैं. उसके मुख्य चार भेद भगवानने फरमायें हैं.