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________________ ध्यानकल्पतरू. रसे संपती संततीके रक्षणका विचार करे, सो भी विषय संरक्षण रौद्रध्यान. ऐसेही येह मेरा सरीर, रत्नोंके करंडीये से भी अधिक प्रियकारी है, इसको. शीत उष्ण वर्षातुमें, यथा योग्य वस्त्र, आहार, पाणी, मकान, से सुख देवू, दंश, मच्छर, वगैरे क्षुद्र प्राणीयोंके भक्षणसे बचावू शत्रओंसे रक्षण करने, शस्त्र सुभटोका बंदोबस्त करूं क्षुद्याको इच्छित भोजनसे, त्रषाको शीतोदकसे, वात, पितादी रोगको औषधोपचारसे, मंत्रादीसें- विलादीके उपसर्गसे रक्षण कर, इस सरीरको अखंड सुखी रखू. ऐसा विचार करे.तथा अपना गौरवर्ण-स्तेज (दमकदार) पुष्ट शरीर देख, खुशी होवे; और अभक्षादीसे पोषण करनेकी इच्छा करे.ओर शरीरके, स्वजन संम्बन्धीयोंके संपतीके नाश करनेवाले जो हैं, उनपे द्रुष्ट प्रणाम लावे, उन्हे-देख क्रोधातूर हो जावें, उनके नाशके लिये अ. नेक उपायोंकी योजना (विचारना) करे. और अपना शरीर धन वगैरे दूसरेके ताबेमें होय, उनको स्वतंत्र. करने अनेक कूयुक्तीयोंका जो विचार होवे. ये सब, विषय संरक्षण नामे रौद्रध्यान समजना. ऐसे इस ध्यानके अनेक भेद हैं. परंतु सबका
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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