________________
द्वितीयशाखा - रौद्रध्यान.
शस्त्र युक्त उंच बुरजो, पक्का किल्ला बनावूं. धनुष्य बाण खड्गादी, अनेक शस्त्र, वक्तरोंका, संग्रह कर रख्खू, धनुवेदादी शिक्षा ग्रहण कर, ग्राम विद्यामें प्रवीन बनूकसरत, और औषधीयादीके सेवनसे, सरीरको पुष्ट महनती रखूं की, वक्तपे हारूं नही. इत्यादि उपायोंसे राज्य रक्षणकी चिंतवणा करे, सो भी विषय संरक्षण रौद्रध्यान.
४१
द्रव्यको जर्मनीयादीकी तीजोरीयोंमे रक्खू, जिस्से अग्नी, चोरादिकका उपद्रव न पहोंचे. मेला गेहला रहूं, की जिससे कुटंब चोरादी धन हरने पीछे न लगे, किसीके साथ मोहब्बत न करूं की, बक्तपें किसीकी प्रार्थनाका भंग करना नही पडे, संकोचसे थोडेही खरच में गुजरान चलावू. हलकी वस्तु वापरुं, इत्यादि उपायसे द्रव्यका रक्षण करूं, और स्त्रीयोंको पडदेमें रखूं, खो जाओंका प्रहरा, खान पान वस्त्र भुषणकी मर्यादा, कमी भाषण, और अपनी तर्फसे उन्हे संतोष उपजाके रखू. की - जिससे वो अन्यकी इच्छा न करे, स्वजन मिलोंको खान, पान, वस्त्र, भुषण, स्थान, सन्मानसे संतोखूं की, जिससे वो वक्त पूरा काम देवे, मकानको सुधराइ सफाइसे रखूं की पडे नही. इत्यादी प्रका